Wednesday, May 31, 2017

जड़ मतलब चेतना विहीन, आत्मा और लागनी विहीन, मृत...और भाई कई सर्वनाम दे सकते है हम इनको । मानवता मर चुकी है, दयाभाव ख़तम हो चूका है, मनुष्य यत्रो से भी ज्यादा जड़ बन चूका है । टेक्नोलॉजी का इतना गलत इस्तेमाल सायद अणु धड़ाको से होनेवाले नुकशान से कम नहीं है । करुणा ही नहीं रही है हम इंसानो में ।
आप सोच रहे होंगे ये सब क्या है । कोनसी फिलोसोफी की किताब से कॉपी किया है । नहीं भाई ये कोई फिलोसोफी की किताब से कॉपी नहीं किया गया है लेकिन थोड़ी देर पहले वॉट्स अप में आये हुए कुछ msg और photoes ने झंझोडकर रख दिया है । एक्सीडेंट में एक नो जवान लड़के की मौत हो गयी है और वो भी बहुत ही भयानक और हम वहा खड़े होकर उस मृत शरीर की फोटो खींचकर शेयर कर रहे है । ऐसे दिल को दहेलादेने वाली करुण घटना की जगह भी अगर हमारे दिल और दिमाग में करुणा की जगह फोटो खींचने की विचार आते है तो बेशक हम आज के यंत्रो से भी ज्यादा जड़ बन चुके है । लगभग ये चीज हर रोज की हो गई है । हर रोज ग्रुप में एक्सीडेंट की, एक्सीडेंट में मरने की कोई ना कोई फोटो आती ही रहती है । आखिर हम कहा जा रहे है । विकास की कोनसी दिशा में आगे बढ़ रहे है । टेक्नोलॉजी जीवन को बहेतर बनाने के लिए है बदतर बनाने के लिए नहीं ।
इससे पहले की देर हो जाये, हम मशीन की जगह और मशीन हमारी जगह ले ले चलो थोड़ा संभल जाते है ।
आखिर में सबसे विनंती है कि महेरबानी करके ऐसी जगह फोटो मत खींचे और उसे शेयर भी मत करे अरे ऐसी जगह फ़ोन पर हाथ ही मत डालिये । अपने अंदर के इंसान को ऐसे किसी समय पे जिन्दा रखेंगे तो सायद गंगा में डुबकी नहीं लगानी पड़ेगी वरना आपके पाप धोते धोते गंगा खुद पापी बन जायेगी ।
। जय माताजी । । शुभ रात्री ।

गांधी - पार्ट -2 / गांधी और भगतसिंह ।

गांधी - पार्ट -2
गांधी और भगतसिंह ।
"क्रांति की तलवार विचारो की धार से तेज होती है "
बहेरे लोगो के कानों तक आवाज पहोचाने के लिए धमाके की जरूर पड़ती है ।
भगतसिंह के ये दो वाक्य प्रतिस्पर्धी है । वैचारिक क्रांति के साथ सडी हुयी सिस्टम को उखाड़ फेंकने वाले बात अगर कोई कह सकता है तो वो भगतसिंह है । भगतसिंह के साथ आज के दिन श्री सुखदेव और श्री राजगुरु को भी फांसी दी गई थी । उन तीनों महान क्रान्तिकारियो को दिल से वंदन ।
आज बहोत लोगो ने उनको शाब्दिक और प्रासंगिक श्रद्धांजलि दी । और उस श्रधांजलि में बहोत से लोगोने जहर भी उगला गांधी के खिलाफ । जब भी मौका मिलता है कुछ सड़क छाप लेखक कही से भी कुछ भी उठाकर wall पे पोस्ट कर देते है ऐसे लोगो से निवेदन है कि कृपया आप जबकि किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के बारे में कुछ भी लिखो पहले उनके लिए किसी के द्वारा लिखी गई कोई पुस्तक पढ़ो और बादमे ही लिखो ।
बहोत से लोग बारबार पोस्ट करते है कि इन तीन क्रान्तिकारियो को फांसी दिलाने में गांधी का हाथ था उन सभी से निवेदन है कि उस वाकया के नीचे किसी पुस्तक का reference भी दे ताकि हम जैसे गवार लोग पढ़ शके ।
जहाँतक और जितना मैंने पढ़ा है । गांधीजी की असहकार आंदोलन की लड़ाई ने ही भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारियो को जन्म दिया था । जब देश गांधी ने असहकार आंदोलन चलाया तब उनसे प्रेरीत होके भगतसिंह और उनके जैसे कई नोजवानो ने अपनी पढाई बिच में छोड़कर गांधीजी के इस आंदोलन में जुड़ गए । लेकिन बाद में चौरीचौरा हत्याकांड की वजह से गांधीजी ने ये आंदोलन बंद कर दिया और वही से भगतसिंह और उनके जैसे युवानो ने सोचा की संपूर्ण अहिंसा से आज़ादी नहीं मिलेगी और उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया ।
नाम याद नहीं है लेकिन किसी की लिखी महान क्रांतिकारी सुखदेव पुस्तक के हिसाब जिस समय भगतसिंह और उनके साथियो को फांसी की सजा सुनाई उसके बाद गांधीजी और कांग्रेस के कुछ लोगो ने उनके पास एक वकील को भेजा था जो भगतसिंह का दोस्त भी था । उसके मुताबिक गांधीजी चाहते थे की भगतसिंह और उनके साथी गवर्नर को एक अर्जी लिखे जैसे आजकल फांसी की सजा पानेवाला व्यक्ति राष्ट्रपति को लिख सकता है । भगतसिंह के वो दोस्त ने गांधीजी और दूसरों के साथ मिलके एक अर्जी तैयार की थी जिसमे ये ध्यान में रखा गया था कि उस अर्जी से क्रान्तिकारियो के स्वमान को कोई ठेस ना पहोचे । लेकिन भगतसिंह चाहते थे की देश के युवा जागे इसलिए वो अपने विचार लोगो तक पहोचाना चाहते थे और उनके हिसाब से उनकी सहादत ही ये काम कर सकती थी इसलिए वो फांसी पर लटककर देश को जगाना चाहते थे ।
अंत में अगर भगतसिंह और उनके साथी चाहते तो असेम्बली में बोम्ब ब्लास्ट करके भाग सकते थे और बच भी सकते थे लेकिन वो ये नहीं चाहते थे ।
मरकर भी ना निकलेगी वतन की उल्फत ।
मेरी मिटटी से भी खुश्बू ए वतन आएगी ।
लेखन :- वीर Dated : 23rd March, 2017
UP special....
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व का एजेंडा लेकर चलने वाले पक्ष को up की जनता ने प्रेम और आदर से जिताया और पक्ष ने भी आदित्यनाथ जैसे युवा, कर्मनिष्ठ, सन्यासी को मुख्यमंत्री बनाकर कुछ हद तक यूपी की जनता की भावनाओं की कदर की है जो देश के लिए आनेवाले समय में प्रगतिशील साबित होगी ।
अब योगीजी ने भी आते ही मैच के लास्ट ओवर में दिखने वाली आक्रामकता के साथ अपना काम शुरू कर दिया । कुछ कतलखाने बंद करवाये, एंटी रोमियो स्कोड की नियुक्ति की ताकि देश की बेटिया सलामत रह शके(आशा रखते है कि स्कोड अपना काम पूर्ण ईमानदारी और प्रमाणिकता से करे क्योंकि सेवा के नाम पर मेवा खाना और रक्षा के नाम पर भक्ष करना हमारे देश में आम बात है ) उसके बाद सुना है कि स्कूल में शिक्षकों के लिए मोबाइल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । चलो मानते है सही किया अब शिक्षक पूरा ध्यान बच्चो को पढ़ाने में लगा सकेंगे लेकिन ये आपने किया है तो एक काम और भी करना चाहिए था सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियो को भी यही शर्त लागु की जानि चाहिए जो की अभीतक नहीं की है क्योंकि भ्रस्टाचार के बड़े बड़े सौदे ऐसे ही पर्सनल फ़ोन द्वारा ही तो होते है ।
अब जब आप सबसे ऊपर है तब आपकी जिम्मेदारी उन सब लोगो के प्रति है जो राज्य में रहते है । जात, धर्म को भुलाकर आपको सबको साथ लेकर चलना पड़ता है । अगर आप ये करने में असफल रहे तो बेसक आपकी प्रमाणिकता पर सवाल उठेंगे । आज किसी मुसलमान दोस्त में एक लिंक शेयर किया दिखा उसमे उसने लिखा है कि up के सबसे बड़े 32 कतलखाने के मालिक या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में मुस्लिमो के साथ कई हिन्दू भी है । जब आप कतलखाने बंद करवा ही रहे है तो कृपया इन 32 पर भी ध्यान दे ।
इस लिंक की सत्यता का मुझे पता नहीं लेकिन उसने उस लिंक में उस 32 कत्लखानो के नाम address के साथ दिए है ।
अंत में जब आप धर्म और अहिंसा की बात करते हो तब हिंसा करने वाला समाज के लिए घातक ही होता है चाहे वो किसी भी धर्म का हो । हिंसा चाहे गैरकानूनी कत्लखानो में हो या रजिस्टर्ड कत्लखानो में , हिंसा , हिंसा होती है । किसी जानवर की हत्या को आप वैधानिक अनुमति दे रहे है वही दूसरी और उसी हत्या आपके लिए गलत है तो ये दोगलापन है ।
लेखन :- वीर ...Dated:- 25/03/2017
भावनात्मकता हम भारतीयों की कमजोरी है और व्यक्तिपूजा हमारे खून में है चाहे वो नेहरू हो या मोदी । भारतीय राजकारणी अस्सी तरह से जानते है कि लोगो की भावनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए । बेसक सनातन धर्म का उदय होते हुए देख रहे है सब लेकिन जो कभी अस्त ही नहीं हुआ उसको उदय होनी की जरुरत ही क्या है । सनातन धर्म कल भी मध्याह्न के सूरज की माफिक तप रहा था और आज भी । मात्र केवल एक हप्ते में लिए गए कुछ उत्तेजक निर्णयों के आधार पर ही सनातन धर्म का उदय स्वीकार्य है तो इसका उदय बाबरी ध्वंश से ही माना जाना चाहिए । चंद बूचड़खाने बंद करवाना ही मापदंड नहीं होना चाहिए सनातन धर्म के उदय के लिए । और बात जब हम सनातन धर्म की करे तो क्या किसी को पशु की जान लेने के लिए संविधानिक अनुमति दे सकते है क्या ?? सिर्फ असंवैधानिक भुचडखाने बंद करवाना मात्र ही सनातन का उदय मानना उन हजारो पशुओं के प्रति हमारी रुस्थता ही होगी जो अब संविधानिक कत्लखानो में काटे जायेंगे । 
जगत नो तात - पिता, भरण पोषण करनेवाला ।
सरदार पटेल ने कहा था अगर इस धरती पे छिना तान के चलने का हक़ अगर किसी को है तो वो खेडूत को ही है ।
भगवान ने दुनिया का सर्जन किया और उस दुनिया को आगे चलाने के लिए दुनिया को माँ की भेंट दी । हम अक्षर कहते है कि भगवान हर जगह नहीं पहोच सकता इसलिए उसने माँ का सर्जन किया । ये जितना सच और महत्वपूर्ण है उतना ही सच ये कहना होगा की भगवान हर किसी को खाना नहीं दे सकता इसलिए उसने खेडूत का सर्जन किया । शारीरिक अथाग परिश्रम और असफल होने का सबसे ज्यादा मानसिक बौज लेकर जीनेवाला खेडूत फसल ऊगा के इस दुनिया को खाना खिलाता है । जहाँ आज हम वाइट कॉलर जॉब के पीछे भाग रहे है वही खेडूत दिन ब दिन कम होते जा रहे है । ये दुनिया का अकेला इंसान होगा जिसके हिस्से में कभी कभी उसका पैदा किया हुआ खाना भी नसीब नहीं होता । ठंडी, गरमी या बरसात में अपनी चिंता ना करते हुए खेदुत दिन रात महेनत करके इस दुनिया को वो चीज देते है जिस पर पूरा जीवन निर्भर है लेकिन समय की बलिहारी है कि अब कोई खेती करना नहीं चाहता वहा तक की खेडूत खुद नहीं चाहता की उनके बच्चे उसकी तरह खेती करके जिंदगी भर कर्ज के नीचे दबकर घुटन भरी जिंदगी जिए । बेशक देश की आज़ादी के तुरंत बाद देश की सरकार ने खेती लक्षी योजनाये बनायीं थी लेकिन 1991 के बाद औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई और सरकारों ने खेती के प्रति ध्यान देना बंद कर दिया । खेदुत की दशा दिन ब दिन इतनी बिगड़ती गई की वो आत्महत्या करने पर मजूबर हो गए । गूगल गुरु की मदद से लिए गए कुछ रिजल्ट फोटो में है जिसे देखने के बाद हम अंदाजा लगा सकते है कि खेडूत की हालत कैसी होगी । personally भी मैं गांव से belongs करता हु तो पता है की गावो में खेडूत की हालत कैसी है ।
इतना कम है तो अब एक नया तमाशा शुरू किया है हमारे नेता और उनकी पार्टी के सपोर्टर ने । अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए देश में आजकल एक फैशन चल रही है । किसी भी मुद्दे के साथ सेना और खेडूत को जोड़ कर लोगो की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने की लगातार कोशिश की जा रही है । जब दूध या उनकी बनावट या फिर सब्जी के दाम बढ़ते है और उसका विरोध होता है तो नेता और उनके लोगो द्वारा एक भावनात्मक msg घुमाया जाता है ।
सिनेमा की टिकिट के भाव से तकलीफ नहीं है, बीड़ी सिगरेट की कीमत से तकलीफ नहीं है तो दूध और सब्जी के दाम बढ़ने से क्यों चिल्ला रहे हो ।
अब ये msg घुमाने वालो को सायद पता भी नहीं होगा की ये जो दाम बढ़ाये जाते है वो कंपनी या व्यपारियो के द्वारा बढ़ाये जाते है और मुझे नहीं लगता कि इस बढे हुए दाम का फायदा किसी खेडूत को मिलता हो । अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए खेडूत का सहारा लेने वाले इन नेताओं को सत्ता के अलावा कुछ नहीं दिखता लेकिन हम जनता कमसे कम उनके बारे में सोचेंगे तो सायद उनका भला हो सकेगा । वरना जिस तरह से आत्महत्या के अंक बढ़ रहे है ऐसा ना ही की हमारी आनेवाली पीढ़ी खेडूत को किसी म्यूसियम में देखे और कहे की इस धरती पर कभी खेडूत नाम के परोपकारी प्राणी का अस्तित्व था ।
औद्योगिक विकास। किसी भी देश के विकास के लिए जरुरी है लेकिन वो खेती को खत्म करके नहीं होना चाहिए ।
लेखन :- वीर Dated :- 31/03/2017
श्री कृष्णा ।
बहुत दिनों से सोच रहा था कृष्ण के बारे में लिखने के लिए पर आज एक news देखा की प्रशांत भूषण ने रोमियो के साथ इनकी समानता करके रोमियो को सही साबित करने के लिए इनके चरित्र पर निशान साधा है ।
प्रशांत भूषण जैसे लोग ये कर सकते है क्योंकि हमने आज तक श्री कृष्णा को दुनिया के समक्ष इसी रूप में प्रमोट किया है । जशोदा के लाल से गोपियों संग रास रचने तक ही सिमित रखा है हमने यादव कुलभूषण को । हमारा साहित्य और संगीत, फ़िल्मी गीत हो या भजन हमने इसे इसी रूप में पूजा है । हमने कभी इसको गौ चराने वाला ग्वाला बताया है तो कभी माखन चोरी करने वाला नटखट कन्हैया बताया है । कभी उनसे हमने गोपियों के कपड़ो की चोरी करवाई है तो कभी उनकी मटकी फोड़ने के लिए उनकी शरारत को दिखाया है । हमने कभी कृष्णा को गोकुल से निकलने ही नहीं दिया है । हमारे लिए कृष्णा गोकुल तक सीमित है । हमारी धार्मिक परंपरा हो या जन्मोष्त्व हमने कृष्ण को पालने में झुलाया है । और सायद यही कारण है कि भूषण जैसे लोग उनके चरित्र पर उंगली उठाने की कोशिश कर सकते है ।
मुझे अगर भगवान कृष्ण का कोई रूप पसंद है तो वो है कुरुक्षेत्र के मैदान में धर्म युद्ध का शंखनाद करने वाला या फिर भीष्म पर रथ के पइये को चक्र बनाकर युद्ध का आगाज करने वाला। । हक़ीक़त में कृष्ण की सही पहचान करनी है तो आपको कुरुक्षेत्र की और देखना पड़ेगा । कुरुक्षेत्र के मेदान में युद्ध के लिए खड़े कृष्ण का रूप ही उनके मनुष्य अवतार का सही मकशद और सही पहचान है । लेकिन हमने कुरुक्षेत्र के कृष्ण को कभी बहार ही नहीं आने दिया । शिशुपाल वध से ज्यादा हम रण छोड़कर रणछोड़ कहलाये वो बाते ज्यादा करते है । पुरे महाभारत के महा युद्ध के रचयिता भगवान कृष्ण को हमें कुरुक्षेत्र में भगवद गीता तक सीमित कर दिया है । अर्जुन ने जिस रूप को देखा उस वैष्विक रूप को हमने कभी दुनिया को बताया ही नहीं ।
लोकशाही और कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर हमारी संस्कृति और धार्मिकता पर वार करने वाले भूषण जैसो को हमने कृष्ण की राजनैतिक चातुर्य का कभी दर्शन ही नहीं करवाया है । और इसलिए ये लोग बारबार हमारे आराध्य अवतारो पर सवाल खड़े करते है । जिस दिन इन लोगो को कुरुक्षेत्र के कृष्ण या लंका के रण में रावण का वध करने के लिए धनुष्य उठानेवाले राम या अपने नहोर से हिरण्य कश्यप को चीर देने वाले नरसिंह भगवान के दर्शन होंगे उसके बाद उनकी हिम्मत नहीं होगी इस तरह के सवाल उठाने की ।
लेखन :- वीर Dated:- 03/04/2017
रामनवमी के शुभ अवसर पर राक्षसी विचार के साथ नेगेटिव पोस्ट ।
आशा करते है और आज रामनवमी के दिन मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम से प्रार्थना करते है कि आनेवाले समय में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो जाये, देश में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के साथ ऐसा करने वालो को कड़क सजा के लिए कानून बने, गाय को राष्ट्रीय पशु जाहिर किया जाये, बांग्लादेशी घुस पेथिये अपने देश खदेड़ दिए जाये, हिंदुस्तानी मुसलमान वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए बकरी ईद के दिन मिठाई वहेचके जिव हत्या पर रोक लगाए , योग करे और अपने बच्चों को उर्दू के साथ संस्कृत सिखाये, कुरान के साथ रामायण और गीता के पाठ हो, भूषण जैसे लोग देश छोड़कर जा चुके हो । लव जिहाद खत्म हो चुकी हो ।
अब विचार ये आ रहा है कि अगर ये सब हो गया तो फिर हिंदूवादी संगठन और संस्थाएं और उनके नेताओ के साथ उनके अनुयायी क्या करेंगे ??? वो तो बिना काम के हो जायेंगे उनके पास कोई काम ही नहीं रहेगा । सारे संगठन और संस्थाएं बंद हो जायेगी फिर उनके नेता क्या करेंगे । क्या वो संन्यास लेके हिमालय चले जायेंगे या फिर समाधी लगा के श्री राम के दर्शन के लिए भक्तिमय हो जायेंगे । विकास का मुद्दा काम नहीं कर रहा है ऐसा लगने पर राजनैतिक पार्टीया किसका सहारा लेंगे । राम मंदिर बन जाने के बाद वाद प्रतिवाद में व्यस्त रहते नेता लोग अंदर ही अंदर घुटन महसूस करेंगे । लघुमति के साथ होने का दावा करने वाले सेक्युलर के पास विरोध करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा ।
बहुत ही कड़वा सच है क्या हक़ीक़त में कुछ लोग चाहते है कि राम मंदिर बने, गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लग जाये , और ये वो लोग भी हो सकते है जो अपने आपको कट्टर हिन्दू बता रहे है या सालो से राम मंदिर निर्माण के लिए लड़ने का दावा कर रहे है , अपने आपको हिन्दुओ के संरक्षक मानने वाले भी हो सकते है या फिर सेक्युलारिसम पर बात बात पर राजनैतिक इशू बनाने वाले बाबर के वंशज भी हो सकते है ।
राम मंदिर सनातन धर्म की आस्था का प्रतिक है और उसे उनके जन्मस्थल पर बनाने का विरोध करनेवाले लोग चाहे किसी भी धर्म के हो वो जाने अनजाने में देश द्रोह ही कर रहे है । राम सिर्फ किसी एक धर्म के भगवान से भी ज्यादा एक सर्व स्वीकार्य राजा थे और एक सुशान देनेवाला राजा सभी धर्म और प्रजाति के लिए आदरणीय होता है । प्रजावत्सलता जिनके राज्य की पहचान हो ऐसे अयोध्या नरेश के मंदिर का निर्माण भारत में रहने वाले हर भारतीय के लिए पहेली पसंद होना चाहिए ।
आओ सभी राजनैतिक पार्टियों और धार्मिक संगठनो की सहाय के बिना सिर्फ प्रजा के प्रयत्नों से राम मंदिर का निर्माण करने के प्रयाश करे ।
जय श्री राम ।
सेल्स & मार्केटिंग ।
वैसे ये subject के बारे में लिखने का दुःसाहस कर रहे है क्योंकि ना हमने mba किया है या नाही कोई मार्केटिंग का course इसलिए इस विषय पर लिखना बस एक बालीस प्रयास होगा ।
वैसे तो ये दो शब्द अलग अलग है लेकिन एक दूसरे के पर्याय है । आप आपकी कोइ चीज बेचने हेतु ही उसका मार्केटिंग करते हो या मार्केटिंग करोगे तो आपकी वस्तु या प्रोडक्ट बिकेगी ।
जनरली जब हम किसी कस्टमर के पास जाते है तो एक ही काम करते है और वो ये की हम हमारी प्रोडक्ट को सबसे श्रेष्ठ बताते है । और इसी कारण कभी कभी हम कुछ ज्यादा ही बता देते है मतलब की जो रियल में प्रोडक्ट होती ही नही वो भी घुसेड़ देते है बिना ये जाने की सामने वाला कस्टमर इसी टाइप की प्रोडक्ट के बारे में क्या जानता है या टेक्निकल नॉलेज कितना है और इसकी वजह से कभी कभी हम फस जाते है अगर सामने से कोई ऐसा सवाल आता है जिसका जवाब हमारी कैपिसिटी के बाहर होता है और परिणाम ये आता है कि हम उस कस्टमर को कन्विंस नही कर पाते है । कभी कभी कस्टमर हमारी बताई हुई खासियत में से ही सवाल खड़े कर देते है प्रोडक्ट के बारे में जिसका जवाब हमारे पास नही होता । ये तरीका उसी जगह काम आ सकता है जहाँ कस्टमर उस प्रॉडक्ट में नया हो या फिर उसके पास टेक्निकल नॉलेज ना हो लेकिन ये जान ने के लिए शर्त ये है कि पहले आप उनको सुनो ओर सबसे बड़ी बात की आपकी प्रोडक्ट की क्वालिटी की जितनी भी बात करो लेकिन एक दो चीज ऐसी भी बताओ जो आपकी प्रोडक्ट में ना हो इससे एक तो अगर वो टेक्निकल नॉलेज होगा तो भी उसके सवाल का जवाब आपके पास होगा और दूसरी बात की उसको आप पर ट्रस्ट भी रहेगा ।
हम अभी सिख रहे है ये सब ओर हम भी कभी कभी फसे है सुरुआत में ।
तकलीफ जिंदगी में कुछ ऐसे ही आती है । जब आप ये पढ़ रहे होंगे तब आप यही महसूस कर रहे होंगे कि ये आपके साथ लाइव हो रहा है और आपको गुस्सा भी आ रहा है ।
आज किसी को मिलना था तो सुबह बाइक लेके निकला । बहुत खुश था पर पता नही था भविष्य के गर्भ में क्या छुपा था ।
बस 15 km दूर गया कि आगे के टायर में पंक्चर हो गया । आधा km गाड़ी घसिड के ले गया और पंक्चर करवा के वहा से निकला ।
अभी थोड़ा ही चला कि कलेज वायर टूट गया । नजदीक ही चार रास्ता था तो वही से नया वायर डलवा दिया और चला ।
आज का दिन पता नही क्यों ऐसा हो रहा था कि थोड़े ही दूर गया और दूसरे टायर में पंक्चर हो गया । नजदीक ही पंक्चर वाला था तो तकक्लिफ़ नही हुई ।
Finally जहा जाना था वहाँ पहोच गया अब मोबाइल निकाला उनको फ़ोन करने के लिए क्योंकि पहेली बार मिल रहे थे जैसे ही फ़ोन लगाने गए बैटरी low ओर मोबाइल बंद । दिमाग मे इतना गुस्सा आया कि एकबार तो सोचा कि मोबाइल को पटक दु लेकिन फिर कंट्रोल किया ।
जैसे तैसे करके नंबर निकाला और अनजान भाई के फ़ोन किया तो वो मुझसे बस कुछ समय पहले ही निकल चुके थे । फाइनली उन्होंने बीच मे 5 मिनिट के लिए मिलने के लिए बोला और हम उस तरफ निकल चुके ।
जहा मिलना था वो जगह सामने ही थी तो खुश होकर जा रहे थे तभी चार रास्ते पे पुलिस वाले ने रोक लिया । बहुत रिक्वेस्ट करने पर भी नही मान रहा था तो 100 रुपया दे दिया और बाइक स्टार्ट किया लेकिन घड़ी में देखा तो आधा घंटा बीत चुका था । एकबार फिर सोचा कि पुलिस वाले को गाड़ी ठोक दु लेकिन कंट्रोल करना पड़ा ।
ये काल्पनिक है और यही आदमी के दुख का कारण भी । ज्यादातर हम दुखी उसी चीजो से होते है जो हक़ीक़त में अस्तित्व में होती ही नही या उस तकलीफ के बारे में सोचकर जो हमने देखी ही नही पर हम सोचते है कि ये हमारे साथ होगा और ऐसे ही हम एक ही तकलीफ के लिए दो बार दुखी होते है एक उसके बारे में सोचकर ओर दूसरी बार जब हकीकत में वो तकलीफ आती है ।
। जय माताजी । । शुभ रात्रि ।
सम्बंध
technology ओर इंडस्ट्रियल devolpment के से आज हम भौतिक साधनो से सज्ज हो रहे है ओर दिन ब दिन हमारा
भौतिक सुख बढ़ता जा रहा है । देश ओर दुनिया विकास की चरमसीमा पर पहोचने वाले है ओर इस विकास की भागदौड़ मे
सायद हम बहुत कुछ गवा बैठे है । थोड़े दिन पहले एक सम्बन्धी के यहा जाना हुआ । 1 बजे पहोचे ओर सायद 4 बजे वह से निकल 
गए । इन तीन घंटो मे खाना वगेरे हुआ लेकिन जो सबसे बढ़ी बात किसी से ठीक से बात न हो पायी... कभी बैठकर
सोचेंगे तो लगता है की आजकल के संबंधो मे पहले वाली मिठास ओर निकटता नहीं रही है । सायद इसका कारण हमारी भागदौड़
भरी जिंदगी है जिसके कारण हम अपने सम्बन्धियो को समय नहीं दे प रहे है ओर रिश्ते भुलाते जा रहे है ।
आज से 15-20 साल पहेले की अगर बात करे तो उस वक़्त जब हम छोटे थे आज भी याद है की कोई मेहमान घर पे
आता थे तो minimum वो 2 दिन तो रहेता ओर ये तो दिन घर पूरा भरा हुआ रहेता थे मेहमान भले ही एक हो लिकिन
सामकों पूरा महोल्ला घर पे इकठा हो जाता था देर रात तक बाते होती थी। संबंधो की वो निकटता आज काही दिख नहीं रही है।
अब किसी बुजुर्ग से सुनते है की हम सदी करने गए थे तो हमारी बारात 2 या 3 दिन तक रुकी थी ओर सायद वही कारण था
के लोग एकदूसरे के नजदीक थे स्वार्थ नहीं था उस वक़्त। उनके पास पैसा ओर भौतिक सुख की चिजे नहीं थी लेकिन हमारे से
वो हजार गुना सुखी थे । आज दिन मे 3 सादिया हो जाती है ओर पता नहीं चलता है / पहेले गाव मे काही भी किसी की भी सादी
ई बात होती तो सबको पता रहेता थे आज padoshi के घर मे सादी हो तो भी card आता है तब पता चलता है ओर
काम की भागदौड़ मे सादी पूरी होने क बाद याद आता है जाने का। बेशक दुनिया विकास की बुलन्दियो को सर करेंगी
लेकिन इस विकास की दौड़ मे हम अकेले पड़ते जा रहे है । लागणीहीन होते जा रहे है। समाज टूटता जा रहा है ।
आज एक वीडियो देखा जिसमे हमारे भारतीय सैनिक रास्ते से गुजर रहे है तब उनके आसपास बहोत सारे युवा उनके आगे पीछे चलते है कोई कुछ बोल रहा है तो कोई सैनिक को थप्पड़ मार रहा है । कोई तो लात मारके सैनिक का हेलमेट ही गिरा देता है लेकिन सैनिक एक भी शब्द बोले बिना , कोई जवाब दिए बिना चले जा रहे है । वो किसी भी प्रकार से प्रत्याघात नही दे रहे है । अजीब लगा ये देख के । क्या कहेंगे इसे विवशता या मजबूरी ।?
मैने कभी कभी सामान्य जिंदगी में देखा है कोई गुन्हेगार को आम जनता ऐसे ही पिटती है तब वो गुन्हेगार बिना किसी प्रतिउत्तर के सहन करके वहा से निकल जाना पसंद करता है । क्या उस सड़क छाप गुन्हेगार ओर हमारे सैनिको में कोई फर्क नही है ।
किसी नेता पर जब कोई जूता या स्याही फेकता है या किसी को कोई थप्पड़ मार देता है तो तुरंत उसको गिरफ्तार किया जाता है तो सैनिक को लात मारने वाले को क्यों नही ????
अपनी हर नाकामयाबी को छुपाने के लिए या नॉट बंधी के वक़्त या फिर हर एक कार्य मे सैनिको के नाम का उपयोग करने वाली सरकार आज सैनिको के साथ हो रहे ऐसे कृतघ्न कार्य के खिलाफ क्यों चुप है ?? पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले सैनिको का पूरा श्रेय अपने पर लेनेवाले नेता आज सैनिको का नाम भी नही लेते दिखता । अपनी हर पोस्ट पर सैनिको की दुहाई देने वाले भक्तजन आज चुप है ।
Actully उस वीडियो में जो दिख रहा है वो बता रहा है कि हमारे ही देश मे हम कितनी मजबूरियों के साथ जी रहे है । हर वक़्त समझौता करने पर हैम हर बार मजबूर है या फिर किये जा रहे है । सत्ता का ऐसा गंदा खेल सायद ही दुनिया के किसी ओर देश मे खेला जाता होगा । जिसके हाथ में बंदूक होते हुए भी किसी की लात खाकर चुपचाप चलते वक़्त दिल और दिमाग की हालत कैसी होगी वो समजना हमारी कैपिसिटी के बाहर की बात है । और अगर ऐसा ही चलता रहा तो सायद वो समय दूर नही जब इस देश पर हिजड़े विदेशी राज करते होंगे ।
अंत मे
गांधी का देश है और उन्होंने कहा था कि कोई आपके एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो हकीकत में हमने गांधी को यही तक सीमित कर दिया आगे सुना ही नही क्योंकि उनका सीधा अर्थ यही होता है कि अगर वो दूसरे गाल पे भी तमाचा मारे तो तीसरी बार वो हाथ ही तोड दो क्योंकि अब आपके पास आगे धरने के लिए तीसरा गाल है ही नही । स्वयम कुछ हद तक ठीक है , क्षमा की भी एक हद होती है और जब कोई इस सीमा का उल्लंघन करता है तो उसको दंडित करने ही मनुष्य धर्म है यही गीता में भगवान ने कहा है । आशा करते है कि हमारी सेना अपने फैसले खुद करे और अपने स्वमान की रक्षा करे क्योंकि देश मे सत्ता पर बैठे हिजड़ो से किसी भी प्रकार की अपेक्षा रखना मूर्खता होगी ।
लेखन :- वीर Dated:13/04/2017
देशभक्तों की सरकार ।
माना कि अटलजी भारत के माननीय}ओर सर्व स्वीकार्य वड़ा प्रधान में से एक है लेकिन आतंकवादियो को कंदहार तक छोड़ने के लिये जानेवाली सरकार देशभक्तों की थी ।
जिन्होंने सत्ता पाने के लिए राम मंदिर को राष्ट्रव्यापी बनाया और यात्रा निकाल कर अपने आपको सबसे बड़ा हिंदुत्व वादी कहलाने वाले अडवाणीजी ने पाकिस्तान में जाकर जिन्हा की कबर पर शीश ज़ुकाया वो सरकार भी देशभक्तों की थी (याद रहे कि आगे की देश द्रोहियो की सरकार के किसी भी मंत्री ने ये नही किया है )
सेना ने कहा कि आगे की सरकार में भी सर्जिकल स्ट्राइक हुए है लेकिन क्योंकि ये सुरक्षा की ओर सेना की प्राइवेट बात है इसलिए किसी भी सरकार ने ऐसी बातों को पब्लिकली नही किया क्योंकि वो देश द्रोहियो की सरकार थी लेकिन सेना के नाम पे अपनी सत्ता को बचाने के लिए सेना द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा श्रेय लेके लोगो के बीच चिल्ला चिल्ला कर बताने वाली सरकार देशभक्तों की थी ।
सेना के जवानों को खाना जैसा भी मिल रहा है लेकिन आजतक किसी सेनानी ने अपना वीडियो बनाकर उसे पब्लिकली नही किया क्योंकि की उस वक़्त सरकार देशद्रोहियो की थी लेकिन देशभक्तों की सरकार का असर है कि सेना की अंदर की बाते भी जाहिर होने लगी हैं ।
हो सकता है कि आगे की सरकारों में ऐसा कुछ हुआ हो जो मुझे पता नही है तो इनफार्मेशन आवकार्य है ।
नक्सलवाद ।
कॉलेज लाइफ में पढ़ा था न्यूज़ पेपर में इनके बारे में । बहुत ही अस्सा लिखते थे रिपोर्टर ओर न्यूज़ पेपर में लिखने वाले । इनको बिछड़े हुए समाज और आदिवासियो का मसीहा बनाकर पेश करने में सायद कोई पीछे नही रहा होगा । ज्यादा जानकारी तो नही थी इसलिए न्यूज़ पेपर की इस खबरो के आधार पर हम हम भी नक्सलवाद को सही मानते थे और बड़े ही प्रशंसक रहे है उनके लेकिन क्योंकि गांव में रहने के कारणों से बहुत चीजो से अवगत नही थे इसलिए जितना भी पढ़ते थे उसमे उनको हमेशा हीरो के रूप में ही देखा गया है । फिर सोसिअल मीडिया का दौर चला और हम भी उसमे सामिल हुए और नई नई जानकारी मिलने लगी । शुरू में कुछ दोस्त जुडे जो हमारी तरह ही सोचते थे लेकिन फिर सामने आया नक्षलवाद का एक ओर चहेरा जो घिलोना ओर खौफनाक था । निर्दोष लोगों की ह्त्या करना या देश के रक्षको से लड़ना कतई देशभक्ति की सीमा में नही आता है । गरीबो ओर खेदूतो के अधिकार के लिए लड़ने वाले अगर दूसरे रास्ते से अपने ही सैनिको ओर निर्दोष लोगों का खून बहाते है तो वो खुदगर्ज ओर बाहरी ताकतों पर नाचनेवाले बंदर ही बनकर रह जाते है ।
पिछले कुछ सालों में इनकी ताकत बढ़ती दिखाई दे रही है और उनकी ताकत के साथ ही उनके घिलोने कृत्य भी बढ़ने लगे है । आएदिन सैनिको की हत्या जैसी इनकी जिंदगी का मकशद ही बन गया है । आदर्शवाद के साथ सुरु होनेवाली कोई भी लड़ाई समय के चलते दिशाहीन होकर आदर्शो को भुला देती है और वो समाज के लिए घातक साबित होती है ऐसे में सरकार की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे संगठन और उनको सपोर्ट करने वालो के खिलाफ बातचीत या समाधान वाली राह ना अपनाते हुए सीधी कार्यवाही करे ।
आशा रखते है कि 26 सैनिको की ये सहादत आखरी सहादत हो । आतंकवाद से प्रेरित संगठन का खात्मा ही इन शहीदों को सच्ची श्रंद्धाजली होगी ।
वर्तमान समय मे जिस प्रकार सामाजिक और राजकीय समीकरण बन रहे है और जो हालात है उसे देखने के बाद भविष्य कुछ इस तरह होगा ।
समाज दो विभाग में पूरी तरह विभाजित ही जायेगा जिसमे एक तरफ होंगे सवर्ण ज्ञाति के लोको ओर दूसरी ओर बची सारी जाती । इन दोनों के बीच बडा ओर लंबा वर्ग विग्रह होगा । जिसमें सवर्ण अपनी लायकात ओर कैपिबिलिटी को हथियार बनाकर जबकि सामने की ओर से उन्हें मिलने वाले सवैधानिक हको को अपना हथियार बनाएंगे । एक लंबे विग्रह के बाद आखिर में सवर्णो की जीत होगी और सर्व समानता के आधार पर एक नया संविधान लिखा जाएगा लेकिन जैसा कि हर सिस्टम में कोई कमी होती है ऐसे ही कुछ सवर्ण जातिया फिर से मध्यकालीन भारत का परिचय कराते हुये शुद्रों पर अत्याचार करेंगे ।
आगे चलके उन सवर्ण ज्ञाति ओ के बीच मे अपने आपको सर्व श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगेगी और उसमें से एक ओर वर्ग विग्रह पैदा होगा जो सवर्ण ज्ञाति ओ के अंदर ही अंदर होगा जिसमे एक तरफ राजपूत, ब्राह्मण, ओर चारण होंगे और दूसरी ओर बाकी सब सवर्ण ज्ञाति होगी । राजपूत, ब्राह्मण और चारण अपनी लायकात ओर धर्म आधारित नीति नियमो ओर प्रजा कल्याण के विचारो को हथियार बनाएगी वही दूसरी ओर बाकी की सवर्ण ज्ञातिया सत्ता और सम्पति के आधार पर अपने आपको सर्व श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करेगी ।
आखिर में धर्म और नीति की जीत होगी और का चारणों की मदद से ब्राह्मण क्षत्रिय का राजतिलक करके भारत की सत्ता के साथ देश और प्रजा कल्याण की जिम्मेदारी के साथ क्षत्रिय को सत्ता पर बिठाएंगे । ओर फिर से भारत विश्व के महानतम देशो में अपना आधिपत्य स्थापित करेगा ।
ये सारी घटनाये आनेवाले 100 से 150 सालो में घटेगी ओर हो सकता है कि इससे कम समय मे भी
बाबा विरम देव की जय हो ।
अगर आप भारतीय सेना और सैनिको की रेस्पेक्ट करते है तो आपको प्रमाण देना होगा फेसबुक पर किसी देश भक्त की पोस्ट या फ़ोटो को लाइक करके या कॉमेंट करके । यदि आप ऐसा नही करते तो ये मान लिया जाएगा कि आपके मन देश प्रेम नही है और नाही सेना के लिए रेस्पेक्ट ।
सोचो कोई आपके सामने कोई ऐसी चीज रखता हैं जिसका आप मन से सन्मान करते है तो आप बहुत खुश होंगे लेकिन अब वही चीज हररोज हर जगह , हर वक़्त आपके सामने रखी जाए तो आपका response क्या रहेगा । साइकोलोजिकल सोचे तो उस चीज के प्रति आपके मन मे सो सन्मान जनक भावनाएं है उसमें त्रुटि आएगी उसकी मात्रा कम होती जाएगी । और धीरे धीरे वक़्त ये आएगा कि उस चीज की कोई कीमत ही नही रह जायेगी आपके मन मे । अति सर्वत्र वर्जयते ऐसा कुछ सिंद्धांत कहा गया है वो यहाँ पर काम करेगा । और फिर आप उस चीज को देखते ही अपना मुंह फेर लेंगे । ठीक ऐसा ही कर रहे है हमारे फेसबुक पर लड़ने वाले देशभक्त युवा । भारतीय सेना के नाम पर पेज बनाके आये दिन पुरानी किसी सैनिक की मौत की या घायल सैनिक की फ़ोटो अपलोड करके लिखते है अगर आप सच्चे देश भक्त है तो लाइक करे या कॉमेंट करे । इसकी मात्रा इतनी बढ़ गई है की अब उसके देखते ही उल्टी होने लगती है । ऐसे मानसिक रोगी देश भक्तो के कारण सेना के प्रति जो सन्मानिय भावना जन मानस में है वो कम होती जा रही है ।
ठीक ऐसा ही हाल है हमारे सनातन धर्म, राम और राम मंदिर का । आप फेसबुक या वॉट्सऐप खोलेंगे ओर एक मिनिट चलाएंगे तो सायद ही ऐसी पोस्ट से बचेंगे जिसमे आपको आपके धर्म के प्रति आपके मन मे जो सन्मान ओर भावना है उसका प्रमाण देने के लिए या तो लाइक करना पड़ेगा या फिर कॉमेंट या उस पोस्ट को शेयर करना पड़ेगा । यदि आप ऐसा नही करते है या फिर उस पोस्ट पर दो शब्द उल्टे लिख देते है तो आपको तथाकथित धर्म रक्षको के द्वारा विधर्मी या पाकिस्तानी होने का प्रमाणपत्र मिल जाएगा ।
सरकार की हर कामयाबी के साथ नेताओ के गुण गाना ओर हर नाकामयाबी को छुपाने के लिए सेना और धर्म को बीच मे लेकर सवेदनशीलता के आधार पर आपकी भावनाओं से खेलना इन लोगो का धंधा बन गया है ।
ये वो लोग है जिन्हें अपने आपको सनातनी या हिन्दू या फिर सेना का हमदर्द देशभक्त साबित करने के लिए ढंढेरा पीटना पड़ता है ।
आप अगर सेना में है या फिर पुलिस फोर्स में है तो आपके पास वजह है गर्व करने की आप देश की सेवा कर रहे है । आपको सन्मान देकर हम आम आदमी भी गर्व महसूस करते है कि चलो हमारे दिल मे इन देशभक्तों के लिए सन्मान तो है अब ये चर्चा की जरूरत नही की वो सन्मान सिर्फ फेसबुक और वॉट्सऐप पर ही है क्योंकि हकीकत कभी सोसिअल मीडिया से बाहर देखे तो कुछ और भी नजर आता है । बीचमे एक फोटो वायरल हुआ था ट्रैन में सब आम लोग आराम से सीट पर बैठे थे वही एक जवान जमीन पर लेटकर सफर कर रहा था !!
चलो हम देश की सरहद पर ना जा शके उसका गम हरदम रहेगा लेकिन कुछ आम बाते जो हमे ये गर्व महसूस कराएगी की हमने देश के लिए कुछ किया है । वैसे ऐसी बाते बहुत बार शेयर हो चुकी है सोसिअल मीडिया पर क्योंकि हमारी देश भक्ति की मर्यादा वहा तक सीमित है ।
रविवार के दिन आपकी छुट्टी है आप घर पे है । आपके घर से आधा किलोमीटर दूरी पर पान के गल्ले पे आप सिगारेट पीने जाते है बाइक या गाडी लेकर । बस उस छुट्टी के दिन पैदल जाना शुरू करदो । इससे बहुत लाभ होगा देश को भी ओर आप को भी । आपका पैसा बचेगा, सेहत को लाभ होगा, गाड़ी पे घीसारा भी नही पड़ेगा वही देश का ईंधन बचेगा, पॉल्युशन कम होगा । अगर आप बाहर जानेवाले है और जरूरत नही है तो पर्सनल गाड़ी का उपयोग ना करे बल्कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने का प्रयत्न करें ।
आप कहीं से गुजर रहे हो और आपकी नजर पानी के किसी खुले नल पर पड़ती है जिसमे से पानी का व्यय हो रहा है । आप थोड़ी तकलीफ ले के उसे बंद करे फिर चाहे वो एरिया आपके लिए अनजान ही क्यों ना हो ।
आप कुछ लिख रहे है तो ध्यान रखे कि कागज का पूरा उपयोग करे उसे कभी भी आधा लिखजर छोड़ ना दे और अगर जरूरत ना हो तब उपयोग किया हुआ पेपर ही उपयोग में ले ।
आप के घर, आफिस या पब्लिक प्लेस पे अगर जरूरत ना हो तब इलेक्ट्रिसिटी की स्विच बंद करने की तकलीफ आप उठा सकते है ।
आप का कोई सरकारी काम अगर अर्जेंट ना हो तो उसे पूरा कराने हेतु कभी भी लांच ना दे बल्कि पूरे नियमो के तहत सरकारी योजना का लाभ उठाएं ।
पब्लिक प्लेस या प्रॉपर्टी का कभी भी गलत फायदा ना उठाये । उदाहरण के तौर पे । मेरे एक दोस्त ने एक दिन बताया कि उसकी बीवी के सिर में थोड़ा सा दर्द हो रहा था तो उसने तुरंत 108 को बुलाया और वो हॉस्पिटल गए । इस तरह का गलत उपयोग ओर कई मुश्किलिया पैदा कर सकते है ओरो के लिए ।
ओर भी बहुत छोटी छोटी बातों से ओर अपनी जिम्मेदारी से देश की सेवा कर सकते है । अगर आपके ध्यान में ऐसा कुछ है तो इस पोस्ट में एडिट करके आगे बढ़ाए ।
। वीर ।
देशभक्ति -2
आप सुबह नहाके काम पर जाते है । अगर आप मजदूरी करते है और आप के साथ आपके कपड़े शाम को गंदे हो जाते है तो बेशक आपको शाम को घर आकर फिर से नहाना पड़ेगा लेकिन आप अस्सी वाली जॉब करते है और पूरा दिन AC आफिस में बैठकर काम करते है तो आपको कोई जरूरत नही है शाम को घर जाकर दुबारा नहाने की । अगर आप ये कर सकते है तो आप देश और देश की उस जनता की बड़ी ही सेवा कर सकते है जो देश के कुछ हिस्से जहा पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिलता है । आप शहर में रहते है तो आपको पूरा पानी मिलता है लेकिन हम वो नही जानते कि ये पानी हकीकत में किसी के हिस्से से छीन लिया गया है ।
इसलिए कुछ जिम्मेदारी समझकर पानी बचाये ताकि हमारे उन भाइयो को भी पानी मिले जो दूर गावो में रहते है ।
लोकशाही ।
भारत का राजतंत्र अपनी अंतिम सांसो के साथ जिंदगी से जूझ रहा है । लोकशाही की नई व्यवस्था सायद इस देश की धरती को राज नही आई । जिसकी शुरुआत ही एक दूसरे पे आरोप ओर प्रति आरोप से हुई है वो लोकशाही का मुख्य हथियार बन गया है राजकीय पक्षो के लिए । सिर्फ उनकी पगार बढ़ाने की बात को छोड़कर ये लंपट नेता कभी भी एक होकर कोई निर्णय ले नही पाते है । राजकीय दाव पेच के साथ ही समानता के आधार पर रचा गया ये जनता के शासन तंत्र में कितने ही जान लेवा रोग से ग्रहीत हो चुका है ये राजतंत्र । सिर्फ 68 साल की उम्र में ही दुनिया की सबसे बड़ी लोकशाही व्यवस्था अपने अस्तित्व को बचाने के निरंतर निष्फल प्रयाश करती नजर आ रही है । और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जिन लोगो के हाथ मे जनता ने सत्ता रख दी वो लोगो को उसका स्वाद इतना अस्सा लगा कि अब वो चाहकर भी इससे अलग नही कर पा रहे है खुदको । कांग्रेस के गठन के वक़्त तय हुआ था कि आजादी मिलते ही इस संगठन को बिखेर दिया जाएगा लेकिन सत्ता पर बैठते ही वो अपने आदर्शों ओर वादों को भूल गई और सत्ता पर बर्षो तक चिपक गई वही दूसरी ओर देश और देश की जनता की सेवा के लिए बने RSS को लगा कि जनता और देश की सेवा करने के लिए सत्ता जरूरी है और उसने bjp का अर्जन कर दिया । लेकिन हुआ वही जो कांगेस ने किया था वो भी सत्ता पर चिपके रहने के लिए अलग अलग पैतरे बनाने लगे और कुछ हद तक लोगो की भावनाओ को जोड़कर वो सफल भी रहे । जनता का शासन अब इन दो राजकीय विचारधारा के बीच बाटने लगा । कभी उसके हाथ मे तो कभी इनके हाथ मे । आखिर जनता के पास अब ओर कोई राह भी नही थी उनके लिए तो इधर खाई उधर कुआ। ओर लोकशाही की कमजोरी थी कि बिना पढ़े लिखे ओर लंपट लोग सत्ता पर आने लगे । वही पूरा देश दो विचारधारा में बट गया । ओर इसी दो विचारधारा के बहाव में राष्ट्रहित बह गया ।
अंत मे वो दौर आया और जनता के सामने इन दो विचारधारा से बाहर निकलने वाला रास्ता दिखा अन्ना के आंदोलन में से पैदा हुए एक शिक्षित केजरीवाल के रूप और जनता ने उसे पूरे हर्षोउल्लास के साथ अपना भी लिया । लेकिन जनता का ये विश्वास और सपने ने सिर्फ 2 साल में ही दम तोड़ दिया । सत्ता की खुर्सी ने इस नई उम्मीद को अपने रंगों में रंग दिया और जनता को फिरसे वही लाकर खड़ा कर दिया जहा से निकलने के लिए पिछले कुछ सालों से छटपटा रही है जनता ।
क्रमशः
। वीर ।
D.J. in Marriage..
લગન ની મૌસમ પુર જોશ માં ચાલી રહી છે..ચારે બાજુ કાન ફાડી નાખે એવા DJ ના સંગતિ ના તાલે લોકો ઝૂમી રહ્યા છે..લગ્ન એ આનંદ અને ઉલ્લાસ નું વાતાવરણ લઇને દરેક જી જિંદગી માં આવનારો અનેરો પ્રસંગ ..લગભગ લગ્ન માં વરઘોડા માં DJ તો હોય જ..
સમય ની સાથે પરિવર્તન એ સમય ની માંગ પણ છે અને એમાંથી આપના રિવાજો અને એને ઉજવવાના સાધનો માં પણ પરિવર્તન આવે એ સ્વાભાવિક છે..DJ પણ એ પરિવર્તન નું એક સાધન માત્ર છે..પણ કેટલાક પરિવર્તનો ની સાથે મૂળ પ્રસંગ નું આખું રૂપ પણ બદલાય જાય છે...પેલા વરઘોડા ફક્ત દેશી ઢોલ ની સંગાથે થતા જેમાં આગળ ઢોલી હોય અને પાછળ વરરાજા ગાડી અથવા ઘોડી પર અને એની પાછળ બધા માણસો..પછી ઢોલી ની સાથે શરણાઈ વાળા આવ્યા એમા પણ આવું જ દ્રશ્ય હતું લગભગ..ત્યાર બાદ શરણાઈ નું સ્થાન બેન્ડ વાજા એ લીધું અને દ્રશ્ય માં થોડું પરિવર્તન આવ્યું...જે માણસો વરરાજા ની પાછળ હતા એમાંથી થોડા બેન્ડ ની આગળ અને થોડા બેન્ડ ની પાછળ અને એની પાછળ વરરાજા અને એની પાછળ મહિલાઓ.. આ બધું હતું ત્યાં સુધી વરઘોડો જોઈને એ ખ્યાલ આવતો કે વરરાજા કોણ અને ક્યાં છે..પછી નો દોર એટલી આજ નો સમય જ્યારે બેન્ડ ના સ્થાને DJ આવી ગયું અને મૂળ દ્રશ્ય માં પણ પરિવર્તન...આગળ DJ મોટી ગાડી અને મોટા મોટા સ્પીકર સાથે એની આગળ અને પાછળ માણસો અને સૌથી પાછળ વરરાજા..કદાચ વરરાજા સાથે એકાદ નજીકનો માણસ હોય તો હોય..પરકણતું આજ ના આ વરઘોડા માં વરરાજા કોણ અમે ક્યાં છે એ સમજ જ નથી પડતી..લોકો આવે તો છે વરઘોડા માં પણ DJ ના તાલ માં વરરાજા જ ખોવાઈ જાય છે..સમય ની સાથે પરિવર્તન જરૂરી છે પણ એ વાત નું ધ્યાન પણ જરૂરું છે કે એ પરિવર્તન થી મૂળ પણ પરિવર્તિત ના થઇ જાય...એના સિવાય DJ નો અત્યંત અવાજ કાનના પડદા ફોડી નાખે એવો જબરજસ્ત પણ હોય છે..
અંત માં ..
જે પણ હોય પરંતુ DJ માં વાગતા અમારા ઉત્તર ગુજરાત ના ગમન સાંથળ, કિંજલ દવે, જીગ્નેશ કવિરાજ કે રજની બારોટ ના ગીતો તમારા પગ ને ધ્રુજાવી જરૂર નાખશે...જો તમે નાચવા ના માંગતા હોય તો તમારે મન પર વધુ ભાર મૂકી ને રોકાવું જરૂરી બને છે કારણ કે તમારા પગ તો ક્યારનાય ઊંચા નીચા થવા માંડે છે..આવા સમય માં મન એવું ઇચ્છતું પણ હોય છે કે કોઈ મિત્ર આવીને જબરજસ્તી નાચવા માટે લઇ જાય કારણ કે
માન માં પાડવાનો અને ભાવ ખાવાનો આપણા ભારતીય નો જન્મ સિદ્ધ અધિકાર છે..
..વીર...
जय माताजी.....

एकबार एक शेर का बच्चा अपने दूसरे भाइयो से भिसड़ के अलग हो गया ओर जाके sheep के जूण्ड के साथ मिल गया ओर वो उनके साथ ही बड़ा होने लगा .....वो बड़ा हो गया उसी जुण्ड मे ओर अब वो जंगल मे भी जाने लगा उसी जुण्ड के साथ लेकिन जंगल मे जैसे ही शेर आता तो sheep का ये जुण्ड भाग जाता था ओर ये शेर भी उनके साथ ही भाग जाता था॥ये देखकर दूसरे शेर को आश्चर्य होने लगा की ये शेर है फिर भी क्यू भाग रहा है...एक दिन शांति से शेरो ने उस शेर को पकड़ लिया ओर उसे तालाब के पास ले गए ओर उसे कहा की वो शेर है॥उसने जब अपना प्रतिबिंब पनि मे देखा तो उसके अंदर के खून के संस्कार जग गए ओर वो शेरो के साथ शिकार करने लगा.......
 
आपको नहीं लगता की ये स्टोरी आज के टाइम मे हमे ही लागू होती है हम भी अपने भाइयो से बिसड़ के सब अलल्ग अलग हो गए है ओर ऐसे ही किसी न किसी sheep के जुण्ड मे जाकर अपने खुद के संस्कार ओर खुदकी पहेचान भी भूल गए है...हमे पता ही नहीं है की हम कोण है....जब भी कोई दूसरा शेर हमे अपने पैन का अहेसाश करने आता है तो हम उन्हे देखकर भाग जाते है क्यूकी हमने खुद को आईने मे देखनी की कभी कोशिश ही नहीं की......जरूरु है अपने जमीर को जागकर एकबार अपने आप को आईने मे देखने की ओर एकबार हम अपने आपको पहेचान गए तो फिर हमारे अंदर के खून के संस्कार जग जाएंगे ओर फिर दुनिया मे कुछ भी ऐसा नहीं है जो हम हासिल न कर सके....बस हमे जगाने के लिए आते हमारे भाइयो को देखकर भागना बंद करना होगा......

जय माताजी ...जय राजपूताना....

बचपन मे शिक्षा की गंभीरता " शिक्षा या सजा "

बचपन मे शिक्षा की गंभीरता " शिक्षा या सजा "
एक बात पहले लिख देता हूं कि मेरी daughter का रिजल्ट 67% है दूसरी कक्षा में ओर में उसको ध्यान में नही ले रहा हु ओर ना ही में उसकी पढ़ाई को अभी गंभीरता से ले रहा हु ओर उसकी स्कूल ने मुजे एक बेजवाबादार पररेंट्स की श्रेणी में पहले से रख दिया है पर मुजे कोई फर्क नही पड़ता ओर ना ही मेरी बेटी के प्रति मेरे प्रेम में इस चीज से कोई फर्क नही पड़ता ।
ये बात इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि कुछ दिनों से बहोत से लोको ने अपने बच्चों के रिजल्ट को फेसबुक और वॉट्सऐप पर शेयर किया है जिसमे ज्यादातर बच्चो के 90% से ऊपर है जो दूसरी या तीसरी या बाल मंदिर मे है । इसके बावजूद भी मुजे कभी ऐसा नही लग रहा है कि ये कोई चिंता करने की बात हो मेरे लिए लेकिन जो लोगो ने ये फोटो अपलोड की है उनको ओर उनके जैसे कई माता पिता के लिए कुछ ।
आपके बच्चों ने इतना अस्सा रिजल्ट लाया है इसके लिए अभिनंदन ओर आपको गर्व करने वाली बात है लेकिन क्या ये 90% रिजल्ट हमारे बच्चों की योग्यता का आकलन करने का एकमात्र मापदंड है ?? हा जैसे ही आपको पता चला कि आपके बच्चे ने दूसरी या तीसरी कक्षा में 90% से ऊपर अंक प्राप्त किये है और आप उस पर गर्व ले रहे है और उस चीज पर गंभीर है तो ये आनेवाले समय के लिए निराशा को जन्म देनेवाली बात होगी । बचपन है अभी उनका , खेलने दो उनको, जीने दो उनको उनका बचपन , जैसे ही आप इस अंको को गंभीरता से लेंगे आपकी अपेक्षाएं बढ़ती जाएंगी और आगे जा के जब आप का बच्चा इतना ऊंचा रिजल्ट नही लाएगा उस वक़्त आप की आपके बच्चे के प्रति जो अपेक्षाएं होगी उसमे त्रुटि नजर आएगी और वही से शुरू होगा संघर्ष दो जनरेशन के बीच । मत देखो आपके बच्चों का रिजल्ट अगर वो primary स्कूल में है । क्योंकि ये वक़्त उनकी जिंदगी का वो वक़्त है जो अगर इस रिजल्ट के अंकों में उलझ कर दब गया तो वो जिंदगीभर उठ नही पायेगा । आपकी अपेक्षाए आपके बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा को जन्म देगी और उनका बचपन इस आग में जलकर राख हो जाएगा ।
। वीर ।
उन सभी दोस्तों को समर्पित जो गांव से, अपनो से दूर बसते है ।
दो दिन शादी के माहौल में गुजारते ही गांव की याद आ गई । कल नोकरी जाने के विचार मात्र से मन उदाश हो गया । गांव से दूर रहना, गांव के माहौल से दूर रहना बहोत ही कष्टदायक होता है । जिंदगी ना जाने कहा से कहा ले के आ गई । अब जीना है तो काम भी करना पड़ेगा ये हकीकत को चाहते हुए भी ठुकरा नही शकते है । आज ना जाने क्यों मन अजीब सी बेचैनी महसूस कर रहा है । कभी तो मन करता है कि छोड़कर सबकुछ चले जाय गांव परंतु मन के भावों से जिंदगी जीना भी पॉसिबल नही होता है । वास्तविकता कितनी भी नापसंद हो , कितनी भी कठिन हो पर आपको उसका स्वीकार करना ही पड़ता है ।
अक्षर लोग कहते है कि लड़का गांव से बाहर गया तो सुखी हुआ अब उनको ये कौन समाजये की बहार रहना कितना कष्टदायक होता है । हर पल मन के भावों को मौत देनी पड़ती है ।
। वीर ।

महाराणा प्रतापजयंति - 3

आधे घंटे से लगे है फेसबुक को जंज़ोडकर रख दिया , हर एंगल से देखा हमने फेसबुक को लेकिन
1) जातिवाद के विरोध में लगातार चीखने वाले ओर लिखने वाले किसी भी राष्ट्रवादी की wall पर महाराणा प्रताप जयंती की कोई पोस्ट नही दिखी ।
2) हिंदुत्व ओर सनातन का झण्डा लेकर कूदने वाले राष्ट्रभक्तो की wall का भी ऐसा ही कुछ नजारा है ।
3) रोज सेना के नाम की दुहाई देने वाले देशभक्तो की wall पर भी यही हाल है ।
4)हिंदुत्व की दिन में 50 पोस्ट करके उसे शेयर करने के लिए सौगंध देनेवाले ओर मर्दानगी की बाते करने वालो की पोस्ट पर कायराना पोस्ट के अलावा कुछ नही दिखा ।
5)थोड़े दिन पहले ही महान लोगो को किसी जातिवाद में ना बांधने की सलाह देनेवाले भी आज चूक गए ।
ये सारे लोग कल हमारे पास आकर कहेंगे कि हिंदुत्व की रक्षा के लिए हमे एक होना है । कहेंगे वो महाराणा प्रताप ओर शिवजी की विचारधारा पर चलने वाले सच्चे धर्म रक्षक है । कुछ लोग हमें सलाह देने भी आएंगे की आप जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हो ।
हकीकत में ऐसे लोगो का सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए ही होता है और उनके अनुयायी वही राह अपनाते है । ये लोगो समय देखकर हमारी भावनाओ के साथ खेलते है । आज जिनकी जयंती पर बधाई ना देनेवाले इलेक्शन के समय राजस्थान में जाकर महाराणा के आशीर्वाद लेंगे ।
आप सभी को आपका स्वार्थी राष्ट्रवाद और आपका धर्म मुबारक हो । हमें नही चलना है आपके इस राष्ट्रवादी रास्ते पर ओर नाही हमे लड़ना है उस धर्म के लिए जो सिर्फ वोट बटोरने का साधन मात्र है ।
। वीर ।
कुछ दिनों से एक नई मुहिम चालू की है राष्ट्रभक्तो ने । सेना और सेना के जवानों के नाम से एक msg घुमाया जा रहा है कि आप कश्मीर ना जाओ, अमरनाथ की यात्रा पे ना जाओ, ताकि आतंकवादियो की कमर टूट जाये (ठीक ऐसे जैसा भक्तजन नॉट बंधी के समय मे बोल रहे थे ) । इनका कहना है कि आप कश्मीर या अमरनाथ जाते हो तो कश्मीरी लोगो को आमदनी होती है और इसके कारण आतंकवाद इतना मजबूत हो रहा है । अगर ऐसा है तो मेरे ख्याल से सबको दिल्ही जाना चाहिए ताकि हमारे इस पैसों से सरकार मजबूत बने । ये कहते है कि आप 2-3 साल कश्मीर या अमरनाथ नही जाओगे तो आतंकवादी भूखे मरेंगे ओर फिर या तो आत्म समर्पण कर देंगे या खुदकुशी करके मर जायेंगे ।
सही में मेरे ख्याल से इन राष्ट्रभक्तो की जगह फेसबुक और वॉट्सऐप नही पर दिल्ही में होनी चाहिए ।

सलामती

बहोत ही साहस के साथ कुछ लोग एक हाथ मे फ़ोन लेकर बात करते करते बाइक या गाड़ी चला लेते है । उनकी स्किल को धन्यवाद देते है और कभी कभी उनका ये साहस दुसरो के लिए हानिकारक साबित होता है इस बात की भनक भी नही होती ऐसे साहसवीरो को । में अबतक ये नही समझ पाया कि क्या फ़ोन की रिंग का महत्व हमारे ओर दुसरो के जीवन से वधु मूल्यवान है । सोचे तो हम कोई मुकेश या अनिल अंबानी तो है नही की 20 सेकंड late फ़ोन उठाएंगे तो हमारा करोड़ो का नुकशान हो जाएगा और अगर होता भी है तो वो जिंदगी से ज्यादा मूल्यवान तो कभी नही हो सकता । 10 सेकंड लगेंगे आपको आपकी गाड़ी साइड करके फ़ोन उठाने में फिर भी न4 जाने क्यों हम हमारी ओर दुसरो को जिंदगी खतरे में डालते है इस तरह की हरकत से ।
ऐसी की कुछ हालत बिना हेलमेट के बाइक चलाने वालों की है ।
Drive safe, Live Safe...
। वीर ।

पुलिस और प्रशासन

कल फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के 3 वीडियो देखें जिसमे कुछ बिछड़े, कुचले,शोषित,पीड़ित लोग पुलिसवालों को दौड़ा दौडाकर मार रहे थे । ऐसे ही कुछ वीडियो कश्मीर के भी देखे थे जिसमें सेना के जवानों को गरीब, लाचार, लघुमति के लाभ लेनेवाले लोग मार रहे थे । बेशक ये वीडियो मेरी तरह हजारो, लाखो लोगो ने देखे होंगे और सायद नेताओ ने भी देखे होंगे लेकिन सब सायद चुप है क्योंकि अंबेडकर नाम की जो वोट बैंक है उसका सभी तरह से ध्यान रखना हमारी सरकार की पहली जवाबदारी है चाहे इसके लिए कितने भी पुलिसवाले या सैनिक मरे कोई फर्क नही पड़ता ।
सेना और पुलिस हमारी दो फ़ोर्स है जो देश को बाहरी ओर अंदरूनी दुश्मनो से देश , देश की जनता और देश की संपत्ति की रक्षा करते है अगर आज ये लोग ही सुरक्षित नही है तो जनता ओर देश की सुरक्षा किसके हाथों में ??
मुजे कोई फर्क नही पड़ता कि मोदीजी ने 15 लाख क्यों जमा नही करवाये , भाई हमे नही चाहिए ये, ओर नाही हमे आपकी ब्लैक मनी वाली बातों में रस है अगर वो मनी वापस नही ला सकते कोई बात नही , हम नही जानते कि आपका एजेंडा क्या है देश और समाज के लिए । कुछ भी हो । आपको कोई काम नही करना है मत करो हम 2019 में ये सब भूल जाएंगे और आपको एक मौका देंगे लेकिन हमारी सेना और पुलिस के साथ आपकी सरकार का यही रवैया रहा तो माफ करना लेकिन 2019 में जनता का रवैया कुछ अलग ही होगा और सिर्फ 2019 नही पर आनेवाले कई सालो तक जनता आपको माफ भी नहीं कर पायेगी ।
अफसोस है कि जिस दबंगाई से आपने सरकार बनाई वो अब कही दिख नही रही है और खास करके सेना और पुलिस के साथ हो रहे ऐसे हादसो ने कानून व्यवस्था को मजाक बना दिया है और ये सब 2014 के बाद ही हुआ है । इसके लिए किसी के पास हिसाब मत मागियेगा ।
अंत मे सलाम है आनंदीबेन पटेल को जिसने गुजरात मे पुलिस को सत्ता देकर आंदोलन को बेरहमी से कुचला ताकि भविष्य में वो गुजरात के लिए मुश्किली पैदा ना करे ।

द्वितीय विश्वयुद्ध ओर महाराजा दिग्विजयसिंह ।

1942 के आसपास जब भारत आज़ाद नही हुआ था । एक तरफ देश मे आज़ादी कि लड़ाई अपने अंतिम चरण में थी और यही वक़्त था जब पूरा विश्व द्वितीय विश्व युद्ध की लपेटो में घिर चुका था । पोलेंड भी उनमें से एक देश था जो इस तबाही से बच नही पाया था और आनेवाली तबाही से बचने के लिए पोलेंड से एक जहाज में 1000 के आसपास औरते ओर बच्चो को समुद्र मार्ग से रवाना कर दिया था जहाँ भी उनको हेल्प मिले । ये जहाज दुनिया के बहोत देशो में गया लेकिन कही से भी कोई मदद नही मिली और वो जहाज भारत मे मुम्बई के समुद्र तक पहोचा लेकिन उस वक़्त भारत मे अंग्रेजो का शासन था और उन्होंने भी उनको हेल्प करने से मना कर दिया ।
इतिहास साक्षी है राजपूतो के आश्रय धर्म का । उसी वक़्त नावानगर (हाल जामनगर ) के महाराजा दिग्विजयसिंह को ये बात पता चली और बिना कुछ सोचे वो उन सभी पोलेंड के बच्चों और औरतों को जामनगर ले आये । उस वक़्त अंग्रेज सरकार ने जब खर्चा देने से मना कर दिया तब अपने पर्सनल पैसों से खर्च करके महाराजा ने उन सभी के लिए वही पर घर बनाया जो बालाछड़ी के नाम से आज भी हयात है । पूरे 4 साल तक महाराजा ने उनको अपने बच्चे समज के उनका ख्याल रखा । जब उनको भारतीय खाने से तकक्लिफ़ होने लगी तो महाराजा ने उनके लिए खाना बनाने के लिए स्पेशलिस्ट लडकिया गोआ से बुलाई ।
अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले राजपूतो को भारतीय सरकार और भारत की प्रजा याद रखे ना रखे पर पोलेंड ये नही भूल5ओर पोलेंड में एक स्कूल और एक चौराहे का नाम दिग्विजयसिंह के नाम रख दिया ।
। जय माताजी । । जय राजपुताना ।

हिंदूवादी संगठन V/S सनातन

गूगल गुरु में कुछ ढूंढ रहा था तभी मन मे आया कि चलो हिंदुत्व के बारे में कुछ जानकारी हासिल करते है । जब 4 -5 अलग अलग वेबसाइट देखी तो सबमे एक बात सामान्य थी कि हिन्दू शब्द का पहला उपयोग विदेश से भारत मे आये पर्शियन या सायद फ्रांसिस लोगो ने 6 थी या 7 वी सदी में उपयोग किया था । उसका अर्थ होता था सिंधु नदी के आसपास सिंधु संस्कृति के लोग । उनके उच्चारण में s में तकलीफ होन की वजह से सिंधु से हिन्दू शब्द का प्रयोग होने लगा । मुजे एक RRS के कार्यकर्ता ने भी कहा था कि हिन्दू एक समुदाय का नाम है । अब समझ नही आता कि आखिर आज के जो सत्ता लालची संगठन हिन्दू धर्म के नाम पर बने है और उसके रक्षक होने का दावा करते है वो हिन्दू धर्म कहा से पैदा हो गया । हकीकत में हिन्दू शब्द विदेशो की पैदाइश है और हमारे संगठन उसको ही सर्व श्रेष्ठ बनाने पर लगे हुए है ।
हा ये बात है कि हिन्दू कोई धर्म नही है हमारा क्योंकि इसका जिक्र सायद आपको वेद,पुराण, रामायण,महाभारत या गीता में कही भी नही मिलेगा । इस देश मे 2 ही धर्मो की बात की गई है और उनमें से एक है हमारा सनातन धर्म । प्राचीन काल मे ब्राह्मण और बाकी प्रजा इस धर्म के हिसाब से जीवन जीते होंगे । इस धर्म के प्रचार का कार्य ऋषि मुनिओ के हाथ मे था और हमारे लाखो ग्रंथ इस बात के साक्षी है कि उन्होंने अपना कर्तव्य अस्से से निभाया है । हमारे कर्मकांड, यज्ञ, हवन वगेरे सनातन धर्म मे बताए मार्ग पर ही होते थे और आज भी होते है । दुनिया की पुरानी संस्कृति और धर्म है उन में सनातन धर्म सबसे पुराना है और बाकी सब धर्मों का जन्मदाता भी । लेकिन अगर हम इन संगठनों की मान के हिन्दू को अपना धर्म समझ ले तो ये ज्यादा पुराना नही है यानी कि कुछ लोगों के द्वारा सनातन के स्थान पर हिंदुत्व को धर्म बनाने की मुहिम चल रही है । बेशक हिन्दू एक समुदाय है और वो हमारी पहचान विदेशो के लिये है लेकिन उस पहचान के चलते है अपना मूल धर्म भूल ना जाये ये हमारी जिम्मेदारी भी है ।
क्रमश :
। वीर ।

Law .

Law ...
पता नही लॉ में क्या पढ़ते ओर पढ़ाते है लेकिन वकील का मतलब सिर्फ और सिर्फ केस जितना ही है चाहे वो गलत हो या सही तो ऐसे वकीलों से कभी भी किसी को न्याय की अपेक्षा नही रखनी चाहिए । जितने के लिए वकीलों की फालतू दलील असरकारक साबित हो और उससे असत्य की जीत हो वैसा कानून देश की जनता के लिए प्राण घातक हो सकता है ।
कपिल सिब्बल की राम जन्म की दलील तीन तलाक के सामने रखना ही इस बात को साबित करती है कि उनके लिए केस जितने से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नही है फिर यहाँ पे न्याय कहा आया ??? राम अयोध्या में जन्मे है इस बात से किसी भी इंसान के जीवन मे कोई बदलाव नही लाएगा लेकिन तीन तलाक को सही बताना मतलब उस लाखो मुस्लिम औरतो के साथ अन्याय करना होगा और ऐसी प्रथा को साथ देना उस लाखो महिलाओं के जीवन को तहस नहस कर देगा ।
अजीब बात तो ये है कि सरकार को ऐसे मामलों के लिए न्यायतंत्र का सहारा लेना पड़ रहा है वो भी लोकशाही वाले अपने ही देश मे । ओर जहाँतक तीन तलाक जैसी कु प्रथा की बात है तो खुद मुस्लिमो को ही सामाजिक जवाबदारी समझकर इसके खिलाफ लड़त चलानी चाहिए यू कहिये की ये बदलाव उनको अपने अंदर लाना पड़ेगा । औरतो की सुरक्षा बुरखे में नही बल्कि उनके स्वाभिमान की रक्षा करने में है ये बात मुस्लिमो को जितना जल्दी हो स्वीकार कर लेनी चाहिए ।
आशा करते है कि बदलते समय के साथ मुस्लिम अपने कुरिवाजो को तिलांजलि देकर दुनिया के साथ कदम ससे कदम मिलाकर चलने की शुरुआत करेगा ।
। वीर ।

महाराणा प्रतापजयंति - 2

आदरणीय Nagindas Sanghviji..Nd Divya bhaskar news ।
आपका कल के दिव्य भास्कर में छपा लेख पढ़ा । आपका कहना है कि अकबर ओर महाराणा प्रताप की comperision नही हो सकती है । आपकी इस बात के साथ मे पूरी तरह सहमत हूं । आपने अपने क्षत्रियो के प्रति जो पूर्वग्रह है उसका प्रदर्शन किया लेकिन ये बात सही लिख दी क्योंकि एक लुटेरे, घातकी , हत्यारे विदेशी मोगल अकबर की तुलना महान शूरवीर ओर देशभक्त जिन्होंने अपना सर्वस्व देश और प्रजा के लिए बलिदान कर दिया ऐसे महावीर हिन्दू सूर्यवीर महाराणा प्रताप के साथ कभी नही हो सकती है । अरे सर महाराणा तो दूर की बात है लेकिन अकबर ओर किसी भी मोगल की तुलना हमारे किसी हिंदुस्तानी मांस भक्षी कुत्तो से भी नही हो सकती क्योंकि की वफादारी नाम की चीज भी होती है उस जानवर में ।
आपने ओर लिखा है कि अकबर बडी सल्तनत का बादशाह था और महाराणा प्रताप के पास खाली चितोड़ था लेकिन फिर भी वो अकबर उस छोटे से चितोड़ को कभी जीत नही पाया । महाराणा की एक हार आखरी फैसला कभी नही बना । वो लड़े , लगातार लड़े अपनी प्रजा के लिए, अपनी मातृभूमि ओर अपनी संस्कृति के लिए आखरी सांस तक लड़े ओर उनकी इस लड़त की चरम सीमा हल्दीघाटी से अकबर को वापिस भेजने के लिए काफी थी । लिखने से पहले आपने थोड़ा भी सोचा नही की कैसे अकबर की 1 लाख की तोपों से सज्ज सेना से सिर्फ तलवारों ओर अपने अदम्य साहस के साथ 20000 राजपूत लड़े होंगे । उनके बारे में कुछ लिखने से पहले आपजो जोहर कुंड के दर्शन कर लेने थे । कैसे अपनी नाजुक काया को आग के हवाले किया होगा उन क्षत्राणियो ने । आपने लिखा कि आप नही मानते आदर्श महाराणा प्रताप को इसमें कोई नई बात नही है क्योंकि गिधडॉ का आदर्श कभी शेर नही हो सकते है क्योंकि उनमें इतनी हिमत ही नही होती कि वो ऐसे शूरवीरों के रास्ते को पसंद करें ।
अंत मे .....
कोई हैरानी नही हुई आपका लेख पढ़के , बुरा लगा लेकिन फिर सोचा कि आप जैसे लोगो से ओर क्या अपेक्षा रख सकते है क्योंकि मैंने एक लेखक के हिसाब से आपका नाम पहेली बार सुना और सायद किसी गुजराती के लिए ये पहेली बार होगा इसलिए आप जैसे लोगो अपनी ख्याति बढ़ाने के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर बार बार महापुरुषों पर कीचड़ उछालने की कोशिश करते है और इसके पीछे आपकी मंछा सिर्फ ख्याति प्राप्त करने के अलावा कुछ नही होती ।
जय महाराणा ।
। वीर ।

ઉત્તર ગુજરાત ના લોક ગાયકો ..

ઉત્તર ગુજરાત ના લોક ગાયકો ..
ઘણા સમય થી એક ના એક હિન્દી ગીતો અને ભજનો સાંભળીને કંટાળો આવ્યો એટલે વિચાર્યું કે ચલો થોડા લોકગીતો સાંભળું . લોકગીત લોક હયા માંથી નીકળેલી સળવાની છે એમાં લોકો ની ભાવના સમાયેલી હોય છે ..લોક સંસ્કૃતિ ને સાચવીને બેઠા છે આપણા લોકગીતો ...
એટલે થોડા મારી પસંદ ના ગીતો download કર્યા નેટ પર મોટા ભાગે ગીત ની પહેલી લાઈન લખેલી હોય છે એટલે એ જોઈને download કર્યા અને આજે ચાલુ બાઇક પર સાંભળ્યા ત્યારે મગજ એટલું ગરમ થઇ ગયું કે જો કલાકાર સામે હોત તો એક ખેંચી ભી નાંખત ..આખા લોકગીતો ની એક નવી જ વર્ણ શંકર જાત પેદા કરી દીધી છે આ છડક છાપ ગાયકો એ ..મૂળ ગીત ની પહેલી લાઇન નો ઉપયોગ કરીને પછી એમાં એવો તે કચરો ઘુસાડ્યો છે કે કોઈને ભી ગુસ્સો આવે ...ઉદાહરણ ..
છેદડા રે વાઢી ને બાવાળીયા રોપશુ એક વીર રાજપૂત નો રાહડો છે..પેલી લઈને પછી એમાં પાટણ ના પટોળા ને કડી ના કંડલા ઘુસાડી દીધા ..એવું જ બીજું ગઢ રે દાંતા નો રાણો.. અંબાજી નું ગીત ચાલુ કરીને બીજી લાઈન માં કાનુડા ને ઘુસાડી દીધો ..
ખરેખર આવા ગાયકો એ ગુજરાત ની લોક સંસ્કૃતિ ની મજાક બનાવી દીધી છે...આપના કર્ણ પ્રિય સંગીત થઈ મઢેલા લોકગીતો ને આ લોકો એ એ જગ્યા એ પહોંચાડી દીધા છે કે એનું નામ પડે અને સુગ ચડે ..બેવફા, રાધા વગેરે નો ઉપદ્રવ ઓછો હતો એમાં પાછા ખજૂરી ના પાન નો ઉમેરો થયો અને પછી હવે તો ગાડીઓ ની પાછળ પડી ગયા છે..
હવે તો ભગવાન બચાવે આપણી લોક સંસ્કૃતિ ને ...
.. વીર ...

महाराणा प्रतापजयंति

आज पूरा दिन फेसबुक पर वाद विवाद में ही गुजरा । एक पुरोहित जी ने कुछ पोस्ट क्या डाली की बहोत सारे लोगों ने आपत्ति जताई तो ना चाहते हूए भी हमे उस वाद विवाद में भाग लेना पड़ा क्योंकि की आखिर ये सारी पोस्ट का ओर वाद प्रतिवाद का जो केंद्र बिंदु था वो था " राजपूत "
पुरोहितजी ने दो तीन पोस्ट डाली थी राजपूतो पर इसमें जो एक थी । उनका कहना था कि श्री राम राजपूत थे । बस उन्होंने अपने विचार मात्र क्या रखे । सारे हिंदुत्व के रक्षक हिन्दू ओर देश का झण्डा लेकर कूद पड़े । उन पर आरोप लगाया कि आप जातिवाद फैला रहे है (इनके हिसाब से फेसबुक पर एक पोस्ट डालने से जातिवाद फैलता है लेकिन नेताओ के बयान ओर तुष्टिकरण वाले निर्णयों में जातिवाद नही दिखता ) । बोल रहे थे की आप समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हो । किसी ने कहा कि आपके इस कथन से कुछ लोग राम को मानना बंद कर देंगे । कितनी अजीब बात है ना । किसी के सिर्फ इतना कहने से की राम राजपूत थे कुछ लोगो के मन मे राम के लिए आदर नही रहता और यही लोग राम मंदिर और हिंदुत्व की बाते भी करते है । राम एक आस्था है और जिनके मन मे राम है उनके लिए राम कोन थे इससे कोई फर्क नही पड़ता ओर ना ही उनकी आस्था कम होती है । हा लेकिन जो तकवादी हिंदुत्व के जंडे लेकर घूम रहे है उनको बहोत फर्क पड़ता है क्योंकि उनके लिए राम मात्र सत्ता प्राप्ति के लिए साधन मात्र है ।
फेसबुक एक माध्यम है व्यक्ति के विचारों के लिए ओर यहाँ हर कोई अपने विचार रखता है और यही होना चाहिए । ये जरूरी नही की हर विचार हमारी इस्सा के मुजब है । व्यक्ति की निजी सोच है और अगर आप उनके विचार से सहमत नही है उसका ये मतलब तो नही होता कि वो व्यक्ति या उसका बिचार गलत है । अगर आप उसके विचार से सहमत नही है तो नजर अंदाज कर दो ना कि उस व्यक्ति पर अपनी विचारधारा थोपने की कोशिश । हा अगर उसका विचार जन हित के लिए हानिकारक हो तब उसका बिरोध जरूर होना चाहिए लेकिन किसी व्यक्ति का विचार इसलिए कभी भी गलत नही होता कि उसने किसी जाति का समर्थन नही किया और अगर आप को किसी जाति विषयक विचार से तकक्लिफ़ हो रही हो तो समझना कि जातिवाद की जंडे आपके अन्दर ही है और वही से जातिवाद का जन्म भी हुआ है ।
कुछ लोगो का मन सिर्फ इसलिए खिन्न होता है कि उनकी या उनकी जाति की प्रशंसा क्यों नही की जा रही है । क्योंकि अगर आप सर्व जाती समानता के विचार रखते है तो कभी भी किसी एक जाति की किसी के द्वारा हो रही प्रशंसा आपके मन को खिन्न नही कर पायेगा ।
। वीर ।

राजपूत

राजपूत
समुद्र का कुछ भाग सुख जाने से ना उसकी गहराई कम होती है और ना ही उसकी विशालता । बाकी जो पानी के खड्डे में से जितनी जल्दी समुद्र बनते है उनको सूखने में भी इतना ही समय लगता है ।
यही परिस्थिति आज के समय मे राजपूतो की है । भले ही उनका एक हिस्सा सत्ता और सम्पति सूखकर खत्म हो गए है लेकिन फिर भी उनकी वीरता, खुमारी, दातारि, धर्म परायणता कभी भी कम नही हुई । बाकी जो आज सत्ता और सम्पति के जोर से बड़े बन गए है वो कभी भी सागर जितने विशाल और गहरे नही बन पायेंगे । क्योंकि ये सब के लिए सालों तक तपस्या करनी पड़ती है जो इनके बस की बात नही है ।
। वीर ।

दलित संघर्ष

जिन को संविधान लिखने के लिए अग्रिमता दी और जिनके लिखे संविधान पर चल रहे भारत देश मे अब उनके नाम पर एक ओर नक्सलवादी नस्ल पैदा होने जा रही है और ताज्जुब की बात तो ये है कि जिस कानून के रक्षक पुलिसवालो को ये दौड़ा दौड़ा कर पिट रहे है वो कानून और सरकार का उन्हें खुल्ला समर्थन मिल रहा है । इन्होंने अपने कार्य की शुरुआत हिन्दू शिरोमणि वीर महाराणा प्रतापसिंह के जन्मदिन पर निकली रैली पर पत्थर बरसाके शुरू की देश के एक राज्य के एक कोने से ओर फिर वो दिल्ही आते है और फिर से अपनी खोखली दबंगाई दिखाने वहा भी धमाल करते है और कहते है कि ये संगठन सामाजिक उत्थान के लिए बना है । अब जिनके विचारो में ही हिंसा भरी हुई है और शुरुआत भी अराजकता के सर्जन से करते है वो क्या समाज का उत्थान करेंगे ??? हकीकत में उनकी ये हरकत सिर्फ और सिर्फ देश मे हिंसक अराजकता फैलाने के हेतु है ।
सरकार की खामोशी ओर समर्थन आनेवाले समय मे देश के लिए एक जहरीले साँप को दूध पिलाने का काम कर रहा है जो देश के लिए हानिकारक साबित होगा । सामाजिक अराजकता ओर संघर्ष की नींव रखी जा रही है ऐसे संगठनो को समर्थन करके ।
। वीर ।

प्रेम और शरीर ।

प्रेम और शरीर ।
वैसे तो बहुत कुछ लिखा गया है इस विषय पर क्योंकि ये ऐसे विषय है जितना भी जानो कम ही लगता है । और यही विषय है जिस पर आप फिलोसोफी ठोक सकते है आराम से ओर यही होता आया है अबतक । ये सही है और ये गलत बस इन दो वाक्यो के बीच इस विषय को घुमाया गया है हर वक़्त । हमारी महान फिलोसोफी यही कहती है कि जहाँ प्रेम है वहा सेक्स नही हो सकता और जहा सेक्स है वहा प्रेम का होना नामुनकिन है । हम ये भी कहते है कि प्रेम पवित्र है, दो आत्माओ का मिलन है इसलिए प्रेम में शारीरिक संबंध नही होने चाहिए । जब कि सेक्स एक शारीरिक आकर्षण ओर आवेग मात्र है । होगा सायद ये भी सच । लेकिन
कोई भी चीज उसके माध्यम की बिना पॉसिबल नही है । हर संबंध के लिए माध्यम आवश्यक है और बिना माध्यम कोई भी संबंध या भावना व्यक्त नही हो सकती है । अगर आपको गुस्सा आता है किसी पर ओर आप उसे मारना चाहते हो तो आपका हाथ एक माध्यम है । आप रोना चाहो तो आंखे । ये भावनाएं है और प्रेम भी तो उनमें से एक है तो जब किसी के प्रति आपको प्रेम हो तो वो प्रेम व्यक्त करने के लिए शरीर एक माध्यम ही तो है । बिना शरीर का प्रेम शक्य है ??? प्रेम आत्माओं का मिलन है तो उन आत्माओ को भी प्रेम जताने के लिए माध्यम की जरूरत पड़ती ही है । क्या कोई व्यक्ति ऐसे किसी आत्मा से प्रेम करता है जिसके बारे में वो कुछ जानता ही ना हो क्योंकि आत्मा ए तो हर जगह होती है । आप कहेंगे ऐसे कैसे प्रेम होगा । सही है दो प्रेमियों के बीच के रिश्ते को हमेशा से यही नजर से देखा जाता है । आलिंगन या गले मिलना मात्र प्रेम की अभिव्यक्ति ही तो है । आप को बच्चे के प्रति प्रेम आता है तो क्या करते है वही आलिंगन प्रेम की अभिव्यक्ति है बस इसी तरह प्रेमी युगल भी अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते है और हम उसे आवेग का नाम दे देते है ।
तकिया कलम :-
बिना स्पर्श किये प्रेम करना मतलब छाता लेके बारिस में नहाने वाली बात है ।
। वीर ।
23/05/2017

गांधी - पार्ट -3 / गांधी और मोदी ।

गांधी - पार्ट -3
गांधी और मोदी ।
अब आप ये मत कहना कि गांधी नाम की पेटेंट तो कोंग्रेस ने ले रखी है तो उनका नाम मोदी के साथ क्यों ?? जी हाँ गांधी नाम की सीडी का उपयोग करके ना जाने कितने लोग ऊपर पहोच गए लेकिन वो बुड्ढा अभीतक वही का वही है । सभी राजनैतिक पार्टियो ओर नेताओ ने लगातार इस नाम का भरपूर उपयोग किया है और क्यों ना करे यही तो नाम है जिनकी आड़ में ये हरामी नेताओ को ऊपर तक पहोचने का मार्ग दिखता है । कही विरोधा भाष भी है कोई उसको सही बताकर याद करता है तो कोई उसको गाली देकर । जन्मतिथि या श्रंद्धांजलि किसी की भी हो चाहे आज़ाद या भगतसिंह या फिर नत्थूराम जैसे हत्यारे की लेकिन उसको तो याद करना ही पड़ता है मंशा चाहे कुछ भी हो । आप उसे गाली दे सकते हो फ़ेसबुक पर लेकिन जब आपको आपके हक के लिए लड़ना है तो उसी गाँधी के बताए हुए रास्ते का सहारा लेना पड़ता है । बात अब मैन की क्या है गाँधी ओर मोदी का ।
जिस कोंग्रेस का हिस्सा रहा है गांधी उस कांग्रेस ने मात्र सत्ता प्राप्ति के लिए ही उसके नाम का उपयोग किया है । जन्मतिथि या मरणतिथि पर हार चढ़ाके इनको लगता था कि उन्होंने उनका ऋण अदा कर दिया उनको श्रंद्धाजली दे दी । वैसे में हर दूसरे या तीसरे दिन लिखता हु तो उसमें कही ना कही मोदी का विरोध हो जाता है । लेकिन आज मोदी की प्रशंसा करने का मन हुआ तो गांधी को याद कर लिया । हा आज़ाद भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा मोदी सायद जिसने गांधी को सही मायने में ना केवल श्रंद्धाजली दी बल्कि उसको जीवित किया, उनके विचारों को जीवित करने की कोशिश की, उनके स्वप्न का भारत बनाने की ओर एक रास्ता बनाया । मोदी की भारत स्वस्छ्ता अभियान सायद गांधी को सच्ची श्रंद्धाजली है ।
आओ मिलकर मोदीजी ओर गांधीजी के इस स्वप्न के भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे ।
। वीर ।
Dated : 24/05/2017

वैचारिक परिवर्तन

किसी भी समाज का विकास उसकी वैचारिक परिपक्वता पर आधारित होता है इसलिए अगर किसी भी समाज को बदलते समय के साथ अपने समाज को एक विकसित समाज के रूप में स्थापित करना है तक उनको पहले वैचारिक स्तर पर बदलाव लाना होगा । आपका व्यवहार, आपकी भाषा और आपके विचार आपके समाज को अन्य समाज के सामने प्रस्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है । बदलाव को इग्नोर करके अगर आप अपने जड़ विचारो के साथ आगे बढ़ेंगे तो बेसक आपको ओर आपके समाज को संघर्ष में उतारना पड़ेगा और यही संघर्ष आपको ओर आपके समाज को अन्य से दूर ही ले जाएगा ।
। वीर ।

Congress ki trustikaran niti / कांग्रेस की त्रुष्टिकरण निति

लघुमति तृस्टिकरण ही कांग्रेस की कबर खोदने वाली है । आखिर समझ मे ये नही आता कि कैसे इस पार्टी ने 60 साल तक शासन किया है । सायद लगता है कि अस्से लीडर की कमी आज कोंग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी बन गईं है । लगातार अपना अस्तित्व खो रही कोंग्रेस अंतिम श्वास ले रही है और इतनी बड़ी पार्टी के एक भी नेता की बुद्धि नही चलती है कि सिर्फ लघुमति तृस्टिकरण कभी भी सत्ता पर नही बिठा पाएगी उनको । एक तरफ विरोध पक्ष का गला घोंटने ला लगातार प्रयाश हो रहा है सरकार द्वारा ताकि वो अमर्याद सत्ता का लूप उठा शके जो कि लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा क्योंकि विरोध पक्ष लोकतंत्र में एक एहम कड़ी है । कमजोर विरोधपक्ष सरकार को कभी सही निर्णय लेने में मददरूप साबित नही हो सकता । ये जरूरी है कि अगर आपको सत्ता में रहना है तो सर्व हिताय की ही बात करनी पड़ेगी लेकिन कोंग्रेस की गंदी राजनीति के कारण हालात ये है कि बहुमती भारतीय का तो एक वोट उसे नही मिलेगा लेकिन वो लघुमति को भी संभाल नही पाएगी क्योंकि सिर्फ तृस्टिकरण लोगो को लंबे समय तक प्रभावित नही कर सकता है ।
मोदी सरकार की कुछ नीतिओ के कारण लोगो का रुख बदल रहा है था कि कांग्रेस ने फिर उसकी गंदी राजनीति और तृस्टिकरण को दिखा दिया । केरल की घटना के बाद आनेवाले एक भी चुनाव में अगर कांग्रेस एक भी बैठक पर जीत हासिल करती है तो बो बाद आश्रर्य होगा । एक समर्थ व्यक्ति जब दुर्बल व्यक्ति के आधारित हो जाता है तब उसके अस्तित्व पर प्रश्नार्थ लग जाता है ठीक ऐसा ही कांग्रेस ने किया है । वर्तमान राजकरण प्रजाहित की बजाय व्यक्तिगत विरोध का रूप ले चुका है । एक तरफ भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत अभियान है तो दूसरी ओर सारे पक्ष मिलकर सिर्फ और सिर्फ मोदी का विरोध करने में जुटे हुए है और इसी घमासान में प्रजा को नजर अंदाज किया जा रहा है ।
तकिया कलम :-
विरोध का आलम कुछ इस तरह है कि अगर मोदी कह दे कि जाने के बाद पानी से साफ करनी चाहिए तो ये लोग ..........
। वीर ।

देपाल दे - राजपूत राजा ऑफ भावनगर ।

देपाल दे - राजपूत राजा ऑफ भावनगर ।
खेदूतो की जो परिस्थिति है आज देश मे वो बड़ी ही भनायक ओर दयनीय है और सरकार की उनके प्रति जो उदासीन नीतिया है वो ओर भी भयावह है । दिन ब दिन देश के खेदूतो की हालत खराब हो रही है ऐसे माहौल में भावनगर के महाराजा देपाल दे गोहिल को जरूर याद किया जाना चाहिए ।
आज़ादी के बाद लोकशाही प्रथा के लिए देशी राज्यो का विलीनीकरण जरूरी था तब पूरे देश मे सबसे पहले अपना राज्य त्याग देनेवाले भावनगर के महाराजा ओर उनके पूर्वज राजवीओ ने हमेशा लोगो के दिलो पर राज किया है । उसी भावनगर के महाराजा जो कि 1800 गांव के महाराजा थे वो एकबार अपने राज्य की प्रजा की परिस्थिति जान ने के लिए घूमने निकले। जब वो एक खेत के पास से गुजरे तो देखा कि खेत मे खेदुत खेड कर रहा है और देखा तो हल के साथ एक बाजू बैल है और दूसरी बाजू उसकी ओरत को जोता हुआ है । महाराजा ने जाकर उसे रोकने का प्रयाश किया तो खेडूत गुस्सा होकर कह दिया कि मेरे पास ओर बैल नही है और खेती का। समय निकला जा रहा है अगर तुजे दया आ रही है तो तू खुद औरत की जगह हल के साथ जुड़ जा । प्रजा कल्याण ही जिनका कर्तव्य रहा है ऐसे राजपूत ने तुरंत औरत की जगह ले ली और खुद बैल की जगह खेड करने के लिए हल खींचने लगे । बाद में राज्य में जाकर उस खेदुत को नए बैल दिए ।
कथा आगे भी है ।
लोकशाही कभी भी किसी भी हाल में राजशाही की बराबरी नही कर पायेगी ।
। वीर ।

Friday, March 24, 2017

Dear जिंदगी ,

Dear जिंदगी ,
अजीब सी कश्मकश में गुजर रही है तू ! ना ही समझ पाया हूं और ना ही समझ पा रहा हु ! बहुत कोशिश भी की तुजे समजने की पर अफ़सोस की हरबार तू मेरी समझ से कुछ और ही निकलती है ! सोचता हूं कि समजना ही छोड़ दू तुजे पर फिर से तूही मनमे एक मनसा पैदा करती है कि तुजे समजने की एक और नाकाम कोशिश करू ! शायद तुजे ही मजा आने लगा है हर बार मुझे हारता देख ! खेर अब ये मजा ज्यादा नहीं ले पायेगी तू क्योंकि अब मैंने तय कर ही लिया है कि तुजे समजने की कोशिश ही ना करू।

मोदी फेमिया

मोदी फेमिया .......
सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को जाहिर करना, या विदेशो में घूमकर देश का नाम बढाने का दावा करना, इमोशनल होके स्टेज पर रोना या फिर वो मुझे मार डालेंगे ऐसा बयान देकर देश के सैनिक और पुलिस प्रशासन के साथ रक्षा मंत्रालय की काबिलियत पर शक करना, मुझे काट देना, जला देना, फांसी पर लटका देना जैसे भावनात्मक शब्दो द्वारा लोगो की सहानुभूति प्राप्त करना या फिर बिना किसी तयारी के देश के अर्थतंत्र को मुस्किली में धकेल देना ।
ये सारे निर्णय मोदीजी और उनकी सरकार ने सिर्फ कुछ दिनों में ही लिए है । अपनी सत्ता के 3 साल में कुछ ना कर पाए और उन्हें लगने लगा की अब जनता में उनकी मौजूदगी का असर कम होते जा रहा है यो उन्होंने बहोत ही कम समय में कुछ निर्णय ले लिए और वो निर्णय के साथ देशभक्ति को जोड़ दिया । social media और अपने कार्यकर्ता द्वारा इतना और ऐसा प्रसार किया कि कोई आम आदमी अगर उनके निर्णय का विरोध करे तो उसे देशद्रोही का नाम दे दो और बस जनता की भावनाओं को सैन्य के साथ जोड़कर उनके हर निर्णय के साथ सेना का नाम का उपयोग किया गया ताकि कोई आम आदमी अगर उनके किसी भी निर्णय का विरोध करता है तो indirectly वो सेना का विरोध करता नजर आएगा और इसी कारण उनके किसी भी निर्णय का विरोध होना बंद हो गया ।
आखिर ये सब क्यों किया गया। बस phsycology है। जब कोई आदमी या सत्ता किसी किसी मुकाम तक पहोच जाते है या फिर पहोचने का दावा करते है , दिखावा करते है तो लोगो की अपेक्षाएं बढ़ जाती है और जब निर्धारित समय में वो लोग लोगो की अपेक्षाओं के मुताबिक काम नहीं कर पाते तो अपना दिखावा बरक़रार रखने के लिए लोगो को ये अहेसास दिलाना पड़ता है कि वो उनकी अपेक्षाओं के मुताबिक ही काम कर रहे है और इसी हदबड़ाती में वो इसी तरह के निर्णय ले लेते है और फिर उस निर्णय के साथ लोगो की भावनात्मक कमजोरी को जोड़ देते है ।
। जय माताजी ।

ઈમાનદારી.

ઈમાનદારી.....
અત્યારે ચારે બાજુ સરપંચ ની ચૂંટણી ના પડઘમ સંભળાઈ રહ્યા છે. ક્યાંક વડીલો અને ગ્રામજનો ની એકતા અને સમજણ ના દર્શન સમરસ ગામ રૂપે થઈ રહ્યા છે તો ક્યાંક સામસામે ચૂંટણી જીતવા બાયો ચડાવતા પણ નજરે પડી રહ્યા છે. આવો જ કંઈક માહોલ આજ થી 50-60 વર્ષ પહેલાં વડા ના ગોંદરે જોવા મળી રહ્યો હતો. (સમય માં ફેરફાર હોઈ શકે છે.) મોટાભાગે વાઘેલા દરબારો, ઠાકોરો , જૈન વાણીયા, રબારી, પટની, હરિજન એમ કહો કે તમામ વર્ણ ના લોકો આ ગામ માં રહેતા હતા. ગામ પ્રમાણ માં મોટું હતું પણ એકબીજાના ની ઈજ્જત કરીને બધા જ લોકો સંપી ને શાંતિ થી રહેતા હતા. ગામ માં મુખ્ય ધંધો ખેતી હતો. આમ તો ગામ 24 ગામનું જાગીરદાર હતું અને આજુબાજુ ના વિસ્તાર માં દરબારો ની આણ વર્તાતી હતી. પરંતુ દેશ પ્રજાસતાક થયા પછી ના કાયદા ના કારણે જાગીરદારી ખતમ થઈ ગઈ હતી અને બીજા કાયદાઓ ના લીધે ગામ પૂરતી જમીન દરબારો પાછે બચી હતી. ગામ માં એકતા અને સમજણ હતી એટલે ચૂંટણી થતી નહોતી. ( આ ગામ માં સરપંચ ની પહેલી ચૂંટણી 2005 માં આઝાદી પછી પહેલી વાર થઈ હતી જોકે છેલ્લા 2 term થી ચૂંટણી થતી નથી . એમ કહો કે આઝાદી ના આટલા વર્ષો મેં આ ગામ માં એક જ વાર સરપંચ ની ચૂંટણી થઇ છે.) તો એ સમયે ગામ ભેગું થયું અને નક્કી થયું કે 2.5 વર્ષ સરપંચ તરીકે ધારસિંહ વાઘેલા અને 2.5 વર્ષ સરપંચ તરીકે બાલાભાઈ શાહ રહેશે.
એ સમયે બનાસ માં સારું એવું પાણી રહેતું હતું અને ગામ નદી ના કાંઠે હોવાથી જમીન સોનુ પેદા કરતી હતી . પરંતુ જાગીરી માંથી નવા નવા બહાર આવેલા હોવાથી મોટા ભાગની ખેતી પટેલો કરતા હતા. નદી વિસ્તાર ની મોટા ભાગ ની જમીન પટેલો એ વાવેલી. એમાં પટેલો એ આ બધી જમીન ખરીદવા માટે દરબારો ને ઓફર આપી. એમની સારી ઓફર ના કારણે નદી વિસ્તાર માં મોટા ભાગના જમીન માલિકો જમીન વેચવા માટે તૈયાર થઈ ગયા એમ કહો કે ગામ આખું તૈયાર હતું. આ વાત એ વખત ના સરપંચ શ્રી ધારસિંહ જોડે પહોંચી તો એમને પહેલા ગામ લોકો ને સમજાવવાનો પ્રયત્ન કર્યો પણ કોઈ સમજવા તૈયાર નહોતું. આ બાજુ ધારસિંહ વાઘેલા એ પણ નક્કી કરી રાખ્યું હતું કે એમની હયાતી માં તો એક તસુ જમીન વેચવા નહીં દઉં. એ સમયે સરપંચ ની પરવાનગી ની જરૂર હશે ત્યારે આજ થી 50-60 વર્ષ પહેલાં એ પટેલો એ ધારસિંહ વાઘેલા ને લાખો રાણી છાપના રૂપિયા ની ઓફર કરી ખાલી સહી કરવાં માટે અને એમની જમીન પણ નહીં વેચવા ની શરતે. પણ ઈમાનદારી અને પ્રજા કલ્યાણ હંમેશ જેના હૃદય માં હોય એવો રાજપૂત નો દીકરો કદી વેચાય ખરો. પટેલો ની લાખો (આજ ના સમય માં એની કિંમત આંકવી ભી મુશ્કિલ છે) નો ઓફર ઠુકરાવી દીધી એટલું જ નહીં પણ એ સમયે હજારો વીઘા જમીન માં ઉનાળુ બાજરી ની વાવણી કરેલી અને એ પાકી ને લનવા નો સમય હતો એ સમય ધારસિંહ વાઘેલા એ આખા ગામ ના ઢોર ઢાંખર બાજરી માં છુટા મુકાવી અને પોતે એકલા એ ખેતરો માં ગયેલા. એમની ઈમાનદારી ના કારણે કેટલાય ગામવાસીઓ ની જમીન આજે એમની પાછે છે. જ્યારે જ્યારે ગામ માં સરપંચ ની ચૂંટણી નો માહોલ આવે છે ત્યારે દુશ્મનો ના મુખે પણ એક જ વાત હોય છે કે ધારસિંહ વાઘેલા જેવો સરપંચ હવે ક્યારેય ના થઈ શકે.
એમના સરપંચ કાળ દરમિયાન એમને ગામ ના ગોંદરે સમાજમંદિર બનાવેલું જે આજે પણ અડીખમ ઉભું છે અને એ સમયે આખા ગામે ત્યાં એમનું નામ કોતરવાની વાત કરેલી પણ એમને નહીં માનેલું.
લેખન - વિરમસિંહ વાઘેલા.
માહિતી - ગામ ના વડીલો પાછેથી સાંભળેલી.

वार्ता

બાળપણ માં ભણવામાં એક વાર્તા આવતી હતી ...
એકવાર એક શિયાળ સિંહ નું મહોરું પહેરીને ને જંગલ માં આવે છે અને પછી પોતે સિંહ છે એમ કહી બધા ને ડરાવે છે..જંગલ ના નાના નાના પ્રાણીઓ ને ખબર ના હોવાથી એ સિંહ નું મહોરું પહેરેલા શિયાળ ને જ સિંહ માનવા લાગ્યા..આધુનિકતા અને લોકશાહી હોવાથી સિંહ બધું જાણવા છતાં એની પાછે ચૂપ રહેવા સિવાય કોઈ રસ્તો ના હતો..આ વાત ની જાણ જંગલ ના હાથી ને થઇ. જંગલ માં લોકશાહી હતી પરંતુ હાથી આજે પણ સિંહ ને વફાદાર હતા. એટલે હાથી ત્યાં ગયો અને એક જ પ્રહાર માં શિયાળ ને એની ઔકાત બતાવી દીધી...
જંગલ ની જગ્યાએ ભારત ને સમજો..આજકલ લોકશાહી નો ફાયદો ઉઠાવી કેટલાય શિયાળવા, કુતરા જેવા પ્રાણીઓ સિંહ ના મહોરા પહેરીને પોતાને સિંહ સાબિત કરવા મથામણ કરી રહ્યા છે..ફિલ્મ ના માધ્યમ થી કે પછી લેખન સ્વતંત્ર ના નામે ઇતિહાસ ને મારી મચેડીને વિકૃત રૂપે રજુ કરીને પોતાની અસલ જાત છુપાવીને પોતાને સિંહ બતાવી રહ્યા છે.. સિંહ અહીં પણ ચૂપ રહીને જોઈ રહ્યા છે કારણ કે પરિસ્થિતિ જ એવી છે..બસ જંગલ અને અહીં ફર્ક એ છે કે અહીં ઉપર બેઠેલા હાથી પણ બેઇમાન છે એટલે આવા શિયાળવા ઓને એનો સાથ મળી રહે છે..
સમજદાર કો ઈશારા કાફી હૈ....
જય માતાજી.

મોદીજી અને વૈચારિક વિકાસ..

હમણાં રથયાત્રા નિમિતે બંધોબસ્ત માં આવેલા આર્મી ના જવાનો નું અભૂતપૂર્વ સ્વાગત કરવામાં આવ્યું.. મારી જાણ મુજબ કદાચ લોકો માં પહેલા સૈન્ય પ્રત...