Wednesday, May 31, 2017

नक्सलवाद ।
कॉलेज लाइफ में पढ़ा था न्यूज़ पेपर में इनके बारे में । बहुत ही अस्सा लिखते थे रिपोर्टर ओर न्यूज़ पेपर में लिखने वाले । इनको बिछड़े हुए समाज और आदिवासियो का मसीहा बनाकर पेश करने में सायद कोई पीछे नही रहा होगा । ज्यादा जानकारी तो नही थी इसलिए न्यूज़ पेपर की इस खबरो के आधार पर हम हम भी नक्सलवाद को सही मानते थे और बड़े ही प्रशंसक रहे है उनके लेकिन क्योंकि गांव में रहने के कारणों से बहुत चीजो से अवगत नही थे इसलिए जितना भी पढ़ते थे उसमे उनको हमेशा हीरो के रूप में ही देखा गया है । फिर सोसिअल मीडिया का दौर चला और हम भी उसमे सामिल हुए और नई नई जानकारी मिलने लगी । शुरू में कुछ दोस्त जुडे जो हमारी तरह ही सोचते थे लेकिन फिर सामने आया नक्षलवाद का एक ओर चहेरा जो घिलोना ओर खौफनाक था । निर्दोष लोगों की ह्त्या करना या देश के रक्षको से लड़ना कतई देशभक्ति की सीमा में नही आता है । गरीबो ओर खेदूतो के अधिकार के लिए लड़ने वाले अगर दूसरे रास्ते से अपने ही सैनिको ओर निर्दोष लोगों का खून बहाते है तो वो खुदगर्ज ओर बाहरी ताकतों पर नाचनेवाले बंदर ही बनकर रह जाते है ।
पिछले कुछ सालों में इनकी ताकत बढ़ती दिखाई दे रही है और उनकी ताकत के साथ ही उनके घिलोने कृत्य भी बढ़ने लगे है । आएदिन सैनिको की हत्या जैसी इनकी जिंदगी का मकशद ही बन गया है । आदर्शवाद के साथ सुरु होनेवाली कोई भी लड़ाई समय के चलते दिशाहीन होकर आदर्शो को भुला देती है और वो समाज के लिए घातक साबित होती है ऐसे में सरकार की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे संगठन और उनको सपोर्ट करने वालो के खिलाफ बातचीत या समाधान वाली राह ना अपनाते हुए सीधी कार्यवाही करे ।
आशा रखते है कि 26 सैनिको की ये सहादत आखरी सहादत हो । आतंकवाद से प्रेरित संगठन का खात्मा ही इन शहीदों को सच्ची श्रंद्धाजली होगी ।

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