गांधी - पार्ट -2
गांधी और भगतसिंह ।
"क्रांति की तलवार विचारो की धार से तेज होती है "
बहेरे लोगो के कानों तक आवाज पहोचाने के लिए धमाके की जरूर पड़ती है ।
भगतसिंह के ये दो वाक्य प्रतिस्पर्धी है । वैचारिक क्रांति के साथ सडी हुयी सिस्टम को उखाड़ फेंकने वाले बात अगर कोई कह सकता है तो वो भगतसिंह है । भगतसिंह के साथ आज के दिन श्री सुखदेव और श्री राजगुरु को भी फांसी दी गई थी । उन तीनों महान क्रान्तिकारियो को दिल से वंदन ।
आज बहोत लोगो ने उनको शाब्दिक और प्रासंगिक श्रद्धांजलि दी । और उस श्रधांजलि में बहोत से लोगोने जहर भी उगला गांधी के खिलाफ । जब भी मौका मिलता है कुछ सड़क छाप लेखक कही से भी कुछ भी उठाकर wall पे पोस्ट कर देते है ऐसे लोगो से निवेदन है कि कृपया आप जबकि किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के बारे में कुछ भी लिखो पहले उनके लिए किसी के द्वारा लिखी गई कोई पुस्तक पढ़ो और बादमे ही लिखो ।
बहोत से लोग बारबार पोस्ट करते है कि इन तीन क्रान्तिकारियो को फांसी दिलाने में गांधी का हाथ था उन सभी से निवेदन है कि उस वाकया के नीचे किसी पुस्तक का reference भी दे ताकि हम जैसे गवार लोग पढ़ शके ।
बहोत से लोग बारबार पोस्ट करते है कि इन तीन क्रान्तिकारियो को फांसी दिलाने में गांधी का हाथ था उन सभी से निवेदन है कि उस वाकया के नीचे किसी पुस्तक का reference भी दे ताकि हम जैसे गवार लोग पढ़ शके ।
जहाँतक और जितना मैंने पढ़ा है । गांधीजी की असहकार आंदोलन की लड़ाई ने ही भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारियो को जन्म दिया था । जब देश गांधी ने असहकार आंदोलन चलाया तब उनसे प्रेरीत होके भगतसिंह और उनके जैसे कई नोजवानो ने अपनी पढाई बिच में छोड़कर गांधीजी के इस आंदोलन में जुड़ गए । लेकिन बाद में चौरीचौरा हत्याकांड की वजह से गांधीजी ने ये आंदोलन बंद कर दिया और वही से भगतसिंह और उनके जैसे युवानो ने सोचा की संपूर्ण अहिंसा से आज़ादी नहीं मिलेगी और उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया ।
नाम याद नहीं है लेकिन किसी की लिखी महान क्रांतिकारी सुखदेव पुस्तक के हिसाब जिस समय भगतसिंह और उनके साथियो को फांसी की सजा सुनाई उसके बाद गांधीजी और कांग्रेस के कुछ लोगो ने उनके पास एक वकील को भेजा था जो भगतसिंह का दोस्त भी था । उसके मुताबिक गांधीजी चाहते थे की भगतसिंह और उनके साथी गवर्नर को एक अर्जी लिखे जैसे आजकल फांसी की सजा पानेवाला व्यक्ति राष्ट्रपति को लिख सकता है । भगतसिंह के वो दोस्त ने गांधीजी और दूसरों के साथ मिलके एक अर्जी तैयार की थी जिसमे ये ध्यान में रखा गया था कि उस अर्जी से क्रान्तिकारियो के स्वमान को कोई ठेस ना पहोचे । लेकिन भगतसिंह चाहते थे की देश के युवा जागे इसलिए वो अपने विचार लोगो तक पहोचाना चाहते थे और उनके हिसाब से उनकी सहादत ही ये काम कर सकती थी इसलिए वो फांसी पर लटककर देश को जगाना चाहते थे ।
अंत में अगर भगतसिंह और उनके साथी चाहते तो असेम्बली में बोम्ब ब्लास्ट करके भाग सकते थे और बच भी सकते थे लेकिन वो ये नहीं चाहते थे ।
मरकर भी ना निकलेगी वतन की उल्फत ।
मेरी मिटटी से भी खुश्बू ए वतन आएगी ।
मेरी मिटटी से भी खुश्बू ए वतन आएगी ।
लेखन :- वीर Dated : 23rd March, 2017
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