सम्बंध
technology ओर इंडस्ट्रियल devolpment के से आज हम भौतिक साधनो से सज्ज हो रहे है ओर दिन ब दिन हमारा
भौतिक सुख बढ़ता जा रहा है । देश ओर दुनिया विकास की चरमसीमा पर पहोचने वाले है ओर इस विकास की भागदौड़ मे
सायद हम बहुत कुछ गवा बैठे है । थोड़े दिन पहले एक सम्बन्धी के यहा जाना हुआ । 1 बजे पहोचे ओर सायद 4 बजे वह से निकल
गए । इन तीन घंटो मे खाना वगेरे हुआ लेकिन जो सबसे बढ़ी बात किसी से ठीक से बात न हो पायी... कभी बैठकर
सोचेंगे तो लगता है की आजकल के संबंधो मे पहले वाली मिठास ओर निकटता नहीं रही है । सायद इसका कारण हमारी भागदौड़
भरी जिंदगी है जिसके कारण हम अपने सम्बन्धियो को समय नहीं दे प रहे है ओर रिश्ते भुलाते जा रहे है ।
आज से 15-20 साल पहेले की अगर बात करे तो उस वक़्त जब हम छोटे थे आज भी याद है की कोई मेहमान घर पे
आता थे तो minimum वो 2 दिन तो रहेता ओर ये तो दिन घर पूरा भरा हुआ रहेता थे मेहमान भले ही एक हो लिकिन
सामकों पूरा महोल्ला घर पे इकठा हो जाता था देर रात तक बाते होती थी। संबंधो की वो निकटता आज काही दिख नहीं रही है।
अब किसी बुजुर्ग से सुनते है की हम सदी करने गए थे तो हमारी बारात 2 या 3 दिन तक रुकी थी ओर सायद वही कारण था
के लोग एकदूसरे के नजदीक थे स्वार्थ नहीं था उस वक़्त। उनके पास पैसा ओर भौतिक सुख की चिजे नहीं थी लेकिन हमारे से
वो हजार गुना सुखी थे । आज दिन मे 3 सादिया हो जाती है ओर पता नहीं चलता है / पहेले गाव मे काही भी किसी की भी सादी
ई बात होती तो सबको पता रहेता थे आज padoshi के घर मे सादी हो तो भी card आता है तब पता चलता है ओर
काम की भागदौड़ मे सादी पूरी होने क बाद याद आता है जाने का। बेशक दुनिया विकास की बुलन्दियो को सर करेंगी
लेकिन इस विकास की दौड़ मे हम अकेले पड़ते जा रहे है । लागणीहीन होते जा रहे है। समाज टूटता जा रहा है ।
भौतिक सुख बढ़ता जा रहा है । देश ओर दुनिया विकास की चरमसीमा पर पहोचने वाले है ओर इस विकास की भागदौड़ मे
सायद हम बहुत कुछ गवा बैठे है । थोड़े दिन पहले एक सम्बन्धी के यहा जाना हुआ । 1 बजे पहोचे ओर सायद 4 बजे वह से निकल
गए । इन तीन घंटो मे खाना वगेरे हुआ लेकिन जो सबसे बढ़ी बात किसी से ठीक से बात न हो पायी... कभी बैठकर
सोचेंगे तो लगता है की आजकल के संबंधो मे पहले वाली मिठास ओर निकटता नहीं रही है । सायद इसका कारण हमारी भागदौड़
भरी जिंदगी है जिसके कारण हम अपने सम्बन्धियो को समय नहीं दे प रहे है ओर रिश्ते भुलाते जा रहे है ।
आज से 15-20 साल पहेले की अगर बात करे तो उस वक़्त जब हम छोटे थे आज भी याद है की कोई मेहमान घर पे
आता थे तो minimum वो 2 दिन तो रहेता ओर ये तो दिन घर पूरा भरा हुआ रहेता थे मेहमान भले ही एक हो लिकिन
सामकों पूरा महोल्ला घर पे इकठा हो जाता था देर रात तक बाते होती थी। संबंधो की वो निकटता आज काही दिख नहीं रही है।
अब किसी बुजुर्ग से सुनते है की हम सदी करने गए थे तो हमारी बारात 2 या 3 दिन तक रुकी थी ओर सायद वही कारण था
के लोग एकदूसरे के नजदीक थे स्वार्थ नहीं था उस वक़्त। उनके पास पैसा ओर भौतिक सुख की चिजे नहीं थी लेकिन हमारे से
वो हजार गुना सुखी थे । आज दिन मे 3 सादिया हो जाती है ओर पता नहीं चलता है / पहेले गाव मे काही भी किसी की भी सादी
ई बात होती तो सबको पता रहेता थे आज padoshi के घर मे सादी हो तो भी card आता है तब पता चलता है ओर
काम की भागदौड़ मे सादी पूरी होने क बाद याद आता है जाने का। बेशक दुनिया विकास की बुलन्दियो को सर करेंगी
लेकिन इस विकास की दौड़ मे हम अकेले पड़ते जा रहे है । लागणीहीन होते जा रहे है। समाज टूटता जा रहा है ।
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