1942 के आसपास जब भारत आज़ाद नही हुआ था । एक तरफ देश मे आज़ादी कि लड़ाई अपने अंतिम चरण में थी और यही वक़्त था जब पूरा विश्व द्वितीय विश्व युद्ध की लपेटो में घिर चुका था । पोलेंड भी उनमें से एक देश था जो इस तबाही से बच नही पाया था और आनेवाली तबाही से बचने के लिए पोलेंड से एक जहाज में 1000 के आसपास औरते ओर बच्चो को समुद्र मार्ग से रवाना कर दिया था जहाँ भी उनको हेल्प मिले । ये जहाज दुनिया के बहोत देशो में गया लेकिन कही से भी कोई मदद नही मिली और वो जहाज भारत मे मुम्बई के समुद्र तक पहोचा लेकिन उस वक़्त भारत मे अंग्रेजो का शासन था और उन्होंने भी उनको हेल्प करने से मना कर दिया ।
इतिहास साक्षी है राजपूतो के आश्रय धर्म का । उसी वक़्त नावानगर (हाल जामनगर ) के महाराजा दिग्विजयसिंह को ये बात पता चली और बिना कुछ सोचे वो उन सभी पोलेंड के बच्चों और औरतों को जामनगर ले आये । उस वक़्त अंग्रेज सरकार ने जब खर्चा देने से मना कर दिया तब अपने पर्सनल पैसों से खर्च करके महाराजा ने उन सभी के लिए वही पर घर बनाया जो बालाछड़ी के नाम से आज भी हयात है । पूरे 4 साल तक महाराजा ने उनको अपने बच्चे समज के उनका ख्याल रखा । जब उनको भारतीय खाने से तकक्लिफ़ होने लगी तो महाराजा ने उनके लिए खाना बनाने के लिए स्पेशलिस्ट लडकिया गोआ से बुलाई ।
अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले राजपूतो को भारतीय सरकार और भारत की प्रजा याद रखे ना रखे पर पोलेंड ये नही भूल5ओर पोलेंड में एक स्कूल और एक चौराहे का नाम दिग्विजयसिंह के नाम रख दिया ।
इतिहास साक्षी है राजपूतो के आश्रय धर्म का । उसी वक़्त नावानगर (हाल जामनगर ) के महाराजा दिग्विजयसिंह को ये बात पता चली और बिना कुछ सोचे वो उन सभी पोलेंड के बच्चों और औरतों को जामनगर ले आये । उस वक़्त अंग्रेज सरकार ने जब खर्चा देने से मना कर दिया तब अपने पर्सनल पैसों से खर्च करके महाराजा ने उन सभी के लिए वही पर घर बनाया जो बालाछड़ी के नाम से आज भी हयात है । पूरे 4 साल तक महाराजा ने उनको अपने बच्चे समज के उनका ख्याल रखा । जब उनको भारतीय खाने से तकक्लिफ़ होने लगी तो महाराजा ने उनके लिए खाना बनाने के लिए स्पेशलिस्ट लडकिया गोआ से बुलाई ।
अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले राजपूतो को भारतीय सरकार और भारत की प्रजा याद रखे ना रखे पर पोलेंड ये नही भूल5ओर पोलेंड में एक स्कूल और एक चौराहे का नाम दिग्विजयसिंह के नाम रख दिया ।
। जय माताजी । । जय राजपुताना ।
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