Dear जिंदगी ,
अजीब सी कश्मकश में गुजर रही है तू ! ना ही समझ पाया हूं और ना ही समझ पा रहा हु ! बहुत कोशिश भी की तुजे समजने की पर अफ़सोस की हरबार तू मेरी समझ से कुछ और ही निकलती है ! सोचता हूं कि समजना ही छोड़ दू तुजे पर फिर से तूही मनमे एक मनसा पैदा करती है कि तुजे समजने की एक और नाकाम कोशिश करू ! शायद तुजे ही मजा आने लगा है हर बार मुझे हारता देख ! खेर अब ये मजा ज्यादा नहीं ले पायेगी तू क्योंकि अब मैंने तय कर ही लिया है कि तुजे समजने की कोशिश ही ना करू।
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