भावनात्मकता हम भारतीयों की कमजोरी है और व्यक्तिपूजा हमारे खून में है चाहे वो नेहरू हो या मोदी । भारतीय राजकारणी अस्सी तरह से जानते है कि लोगो की भावनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए । बेसक सनातन धर्म का उदय होते हुए देख रहे है सब लेकिन जो कभी अस्त ही नहीं हुआ उसको उदय होनी की जरुरत ही क्या है । सनातन धर्म कल भी मध्याह्न के सूरज की माफिक तप रहा था और आज भी । मात्र केवल एक हप्ते में लिए गए कुछ उत्तेजक निर्णयों के आधार पर ही सनातन धर्म का उदय स्वीकार्य है तो इसका उदय बाबरी ध्वंश से ही माना जाना चाहिए । चंद बूचड़खाने बंद करवाना ही मापदंड नहीं होना चाहिए सनातन धर्म के उदय के लिए । और बात जब हम सनातन धर्म की करे तो क्या किसी को पशु की जान लेने के लिए संविधानिक अनुमति दे सकते है क्या ?? सिर्फ असंवैधानिक भुचडखाने बंद करवाना मात्र ही सनातन का उदय मानना उन हजारो पशुओं के प्रति हमारी रुस्थता ही होगी जो अब संविधानिक कत्लखानो में काटे जायेंगे ।
Wednesday, May 31, 2017
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મોદીજી અને વૈચારિક વિકાસ..
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