Wednesday, May 31, 2017

सेल्स & मार्केटिंग ।
वैसे ये subject के बारे में लिखने का दुःसाहस कर रहे है क्योंकि ना हमने mba किया है या नाही कोई मार्केटिंग का course इसलिए इस विषय पर लिखना बस एक बालीस प्रयास होगा ।
वैसे तो ये दो शब्द अलग अलग है लेकिन एक दूसरे के पर्याय है । आप आपकी कोइ चीज बेचने हेतु ही उसका मार्केटिंग करते हो या मार्केटिंग करोगे तो आपकी वस्तु या प्रोडक्ट बिकेगी ।
जनरली जब हम किसी कस्टमर के पास जाते है तो एक ही काम करते है और वो ये की हम हमारी प्रोडक्ट को सबसे श्रेष्ठ बताते है । और इसी कारण कभी कभी हम कुछ ज्यादा ही बता देते है मतलब की जो रियल में प्रोडक्ट होती ही नही वो भी घुसेड़ देते है बिना ये जाने की सामने वाला कस्टमर इसी टाइप की प्रोडक्ट के बारे में क्या जानता है या टेक्निकल नॉलेज कितना है और इसकी वजह से कभी कभी हम फस जाते है अगर सामने से कोई ऐसा सवाल आता है जिसका जवाब हमारी कैपिसिटी के बाहर होता है और परिणाम ये आता है कि हम उस कस्टमर को कन्विंस नही कर पाते है । कभी कभी कस्टमर हमारी बताई हुई खासियत में से ही सवाल खड़े कर देते है प्रोडक्ट के बारे में जिसका जवाब हमारे पास नही होता । ये तरीका उसी जगह काम आ सकता है जहाँ कस्टमर उस प्रॉडक्ट में नया हो या फिर उसके पास टेक्निकल नॉलेज ना हो लेकिन ये जान ने के लिए शर्त ये है कि पहले आप उनको सुनो ओर सबसे बड़ी बात की आपकी प्रोडक्ट की क्वालिटी की जितनी भी बात करो लेकिन एक दो चीज ऐसी भी बताओ जो आपकी प्रोडक्ट में ना हो इससे एक तो अगर वो टेक्निकल नॉलेज होगा तो भी उसके सवाल का जवाब आपके पास होगा और दूसरी बात की उसको आप पर ट्रस्ट भी रहेगा ।
हम अभी सिख रहे है ये सब ओर हम भी कभी कभी फसे है सुरुआत में ।
तकलीफ जिंदगी में कुछ ऐसे ही आती है । जब आप ये पढ़ रहे होंगे तब आप यही महसूस कर रहे होंगे कि ये आपके साथ लाइव हो रहा है और आपको गुस्सा भी आ रहा है ।
आज किसी को मिलना था तो सुबह बाइक लेके निकला । बहुत खुश था पर पता नही था भविष्य के गर्भ में क्या छुपा था ।
बस 15 km दूर गया कि आगे के टायर में पंक्चर हो गया । आधा km गाड़ी घसिड के ले गया और पंक्चर करवा के वहा से निकला ।
अभी थोड़ा ही चला कि कलेज वायर टूट गया । नजदीक ही चार रास्ता था तो वही से नया वायर डलवा दिया और चला ।
आज का दिन पता नही क्यों ऐसा हो रहा था कि थोड़े ही दूर गया और दूसरे टायर में पंक्चर हो गया । नजदीक ही पंक्चर वाला था तो तकक्लिफ़ नही हुई ।
Finally जहा जाना था वहाँ पहोच गया अब मोबाइल निकाला उनको फ़ोन करने के लिए क्योंकि पहेली बार मिल रहे थे जैसे ही फ़ोन लगाने गए बैटरी low ओर मोबाइल बंद । दिमाग मे इतना गुस्सा आया कि एकबार तो सोचा कि मोबाइल को पटक दु लेकिन फिर कंट्रोल किया ।
जैसे तैसे करके नंबर निकाला और अनजान भाई के फ़ोन किया तो वो मुझसे बस कुछ समय पहले ही निकल चुके थे । फाइनली उन्होंने बीच मे 5 मिनिट के लिए मिलने के लिए बोला और हम उस तरफ निकल चुके ।
जहा मिलना था वो जगह सामने ही थी तो खुश होकर जा रहे थे तभी चार रास्ते पे पुलिस वाले ने रोक लिया । बहुत रिक्वेस्ट करने पर भी नही मान रहा था तो 100 रुपया दे दिया और बाइक स्टार्ट किया लेकिन घड़ी में देखा तो आधा घंटा बीत चुका था । एकबार फिर सोचा कि पुलिस वाले को गाड़ी ठोक दु लेकिन कंट्रोल करना पड़ा ।
ये काल्पनिक है और यही आदमी के दुख का कारण भी । ज्यादातर हम दुखी उसी चीजो से होते है जो हक़ीक़त में अस्तित्व में होती ही नही या उस तकलीफ के बारे में सोचकर जो हमने देखी ही नही पर हम सोचते है कि ये हमारे साथ होगा और ऐसे ही हम एक ही तकलीफ के लिए दो बार दुखी होते है एक उसके बारे में सोचकर ओर दूसरी बार जब हकीकत में वो तकलीफ आती है ।
। जय माताजी । । शुभ रात्रि ।
सम्बंध
technology ओर इंडस्ट्रियल devolpment के से आज हम भौतिक साधनो से सज्ज हो रहे है ओर दिन ब दिन हमारा
भौतिक सुख बढ़ता जा रहा है । देश ओर दुनिया विकास की चरमसीमा पर पहोचने वाले है ओर इस विकास की भागदौड़ मे
सायद हम बहुत कुछ गवा बैठे है । थोड़े दिन पहले एक सम्बन्धी के यहा जाना हुआ । 1 बजे पहोचे ओर सायद 4 बजे वह से निकल 
गए । इन तीन घंटो मे खाना वगेरे हुआ लेकिन जो सबसे बढ़ी बात किसी से ठीक से बात न हो पायी... कभी बैठकर
सोचेंगे तो लगता है की आजकल के संबंधो मे पहले वाली मिठास ओर निकटता नहीं रही है । सायद इसका कारण हमारी भागदौड़
भरी जिंदगी है जिसके कारण हम अपने सम्बन्धियो को समय नहीं दे प रहे है ओर रिश्ते भुलाते जा रहे है ।
आज से 15-20 साल पहेले की अगर बात करे तो उस वक़्त जब हम छोटे थे आज भी याद है की कोई मेहमान घर पे
आता थे तो minimum वो 2 दिन तो रहेता ओर ये तो दिन घर पूरा भरा हुआ रहेता थे मेहमान भले ही एक हो लिकिन
सामकों पूरा महोल्ला घर पे इकठा हो जाता था देर रात तक बाते होती थी। संबंधो की वो निकटता आज काही दिख नहीं रही है।
अब किसी बुजुर्ग से सुनते है की हम सदी करने गए थे तो हमारी बारात 2 या 3 दिन तक रुकी थी ओर सायद वही कारण था
के लोग एकदूसरे के नजदीक थे स्वार्थ नहीं था उस वक़्त। उनके पास पैसा ओर भौतिक सुख की चिजे नहीं थी लेकिन हमारे से
वो हजार गुना सुखी थे । आज दिन मे 3 सादिया हो जाती है ओर पता नहीं चलता है / पहेले गाव मे काही भी किसी की भी सादी
ई बात होती तो सबको पता रहेता थे आज padoshi के घर मे सादी हो तो भी card आता है तब पता चलता है ओर
काम की भागदौड़ मे सादी पूरी होने क बाद याद आता है जाने का। बेशक दुनिया विकास की बुलन्दियो को सर करेंगी
लेकिन इस विकास की दौड़ मे हम अकेले पड़ते जा रहे है । लागणीहीन होते जा रहे है। समाज टूटता जा रहा है ।
आज एक वीडियो देखा जिसमे हमारे भारतीय सैनिक रास्ते से गुजर रहे है तब उनके आसपास बहोत सारे युवा उनके आगे पीछे चलते है कोई कुछ बोल रहा है तो कोई सैनिक को थप्पड़ मार रहा है । कोई तो लात मारके सैनिक का हेलमेट ही गिरा देता है लेकिन सैनिक एक भी शब्द बोले बिना , कोई जवाब दिए बिना चले जा रहे है । वो किसी भी प्रकार से प्रत्याघात नही दे रहे है । अजीब लगा ये देख के । क्या कहेंगे इसे विवशता या मजबूरी ।?
मैने कभी कभी सामान्य जिंदगी में देखा है कोई गुन्हेगार को आम जनता ऐसे ही पिटती है तब वो गुन्हेगार बिना किसी प्रतिउत्तर के सहन करके वहा से निकल जाना पसंद करता है । क्या उस सड़क छाप गुन्हेगार ओर हमारे सैनिको में कोई फर्क नही है ।
किसी नेता पर जब कोई जूता या स्याही फेकता है या किसी को कोई थप्पड़ मार देता है तो तुरंत उसको गिरफ्तार किया जाता है तो सैनिक को लात मारने वाले को क्यों नही ????
अपनी हर नाकामयाबी को छुपाने के लिए या नॉट बंधी के वक़्त या फिर हर एक कार्य मे सैनिको के नाम का उपयोग करने वाली सरकार आज सैनिको के साथ हो रहे ऐसे कृतघ्न कार्य के खिलाफ क्यों चुप है ?? पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले सैनिको का पूरा श्रेय अपने पर लेनेवाले नेता आज सैनिको का नाम भी नही लेते दिखता । अपनी हर पोस्ट पर सैनिको की दुहाई देने वाले भक्तजन आज चुप है ।
Actully उस वीडियो में जो दिख रहा है वो बता रहा है कि हमारे ही देश मे हम कितनी मजबूरियों के साथ जी रहे है । हर वक़्त समझौता करने पर हैम हर बार मजबूर है या फिर किये जा रहे है । सत्ता का ऐसा गंदा खेल सायद ही दुनिया के किसी ओर देश मे खेला जाता होगा । जिसके हाथ में बंदूक होते हुए भी किसी की लात खाकर चुपचाप चलते वक़्त दिल और दिमाग की हालत कैसी होगी वो समजना हमारी कैपिसिटी के बाहर की बात है । और अगर ऐसा ही चलता रहा तो सायद वो समय दूर नही जब इस देश पर हिजड़े विदेशी राज करते होंगे ।
अंत मे
गांधी का देश है और उन्होंने कहा था कि कोई आपके एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो हकीकत में हमने गांधी को यही तक सीमित कर दिया आगे सुना ही नही क्योंकि उनका सीधा अर्थ यही होता है कि अगर वो दूसरे गाल पे भी तमाचा मारे तो तीसरी बार वो हाथ ही तोड दो क्योंकि अब आपके पास आगे धरने के लिए तीसरा गाल है ही नही । स्वयम कुछ हद तक ठीक है , क्षमा की भी एक हद होती है और जब कोई इस सीमा का उल्लंघन करता है तो उसको दंडित करने ही मनुष्य धर्म है यही गीता में भगवान ने कहा है । आशा करते है कि हमारी सेना अपने फैसले खुद करे और अपने स्वमान की रक्षा करे क्योंकि देश मे सत्ता पर बैठे हिजड़ो से किसी भी प्रकार की अपेक्षा रखना मूर्खता होगी ।
लेखन :- वीर Dated:13/04/2017
देशभक्तों की सरकार ।
माना कि अटलजी भारत के माननीय}ओर सर्व स्वीकार्य वड़ा प्रधान में से एक है लेकिन आतंकवादियो को कंदहार तक छोड़ने के लिये जानेवाली सरकार देशभक्तों की थी ।
जिन्होंने सत्ता पाने के लिए राम मंदिर को राष्ट्रव्यापी बनाया और यात्रा निकाल कर अपने आपको सबसे बड़ा हिंदुत्व वादी कहलाने वाले अडवाणीजी ने पाकिस्तान में जाकर जिन्हा की कबर पर शीश ज़ुकाया वो सरकार भी देशभक्तों की थी (याद रहे कि आगे की देश द्रोहियो की सरकार के किसी भी मंत्री ने ये नही किया है )
सेना ने कहा कि आगे की सरकार में भी सर्जिकल स्ट्राइक हुए है लेकिन क्योंकि ये सुरक्षा की ओर सेना की प्राइवेट बात है इसलिए किसी भी सरकार ने ऐसी बातों को पब्लिकली नही किया क्योंकि वो देश द्रोहियो की सरकार थी लेकिन सेना के नाम पे अपनी सत्ता को बचाने के लिए सेना द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा श्रेय लेके लोगो के बीच चिल्ला चिल्ला कर बताने वाली सरकार देशभक्तों की थी ।
सेना के जवानों को खाना जैसा भी मिल रहा है लेकिन आजतक किसी सेनानी ने अपना वीडियो बनाकर उसे पब्लिकली नही किया क्योंकि की उस वक़्त सरकार देशद्रोहियो की थी लेकिन देशभक्तों की सरकार का असर है कि सेना की अंदर की बाते भी जाहिर होने लगी हैं ।
हो सकता है कि आगे की सरकारों में ऐसा कुछ हुआ हो जो मुझे पता नही है तो इनफार्मेशन आवकार्य है ।
नक्सलवाद ।
कॉलेज लाइफ में पढ़ा था न्यूज़ पेपर में इनके बारे में । बहुत ही अस्सा लिखते थे रिपोर्टर ओर न्यूज़ पेपर में लिखने वाले । इनको बिछड़े हुए समाज और आदिवासियो का मसीहा बनाकर पेश करने में सायद कोई पीछे नही रहा होगा । ज्यादा जानकारी तो नही थी इसलिए न्यूज़ पेपर की इस खबरो के आधार पर हम हम भी नक्सलवाद को सही मानते थे और बड़े ही प्रशंसक रहे है उनके लेकिन क्योंकि गांव में रहने के कारणों से बहुत चीजो से अवगत नही थे इसलिए जितना भी पढ़ते थे उसमे उनको हमेशा हीरो के रूप में ही देखा गया है । फिर सोसिअल मीडिया का दौर चला और हम भी उसमे सामिल हुए और नई नई जानकारी मिलने लगी । शुरू में कुछ दोस्त जुडे जो हमारी तरह ही सोचते थे लेकिन फिर सामने आया नक्षलवाद का एक ओर चहेरा जो घिलोना ओर खौफनाक था । निर्दोष लोगों की ह्त्या करना या देश के रक्षको से लड़ना कतई देशभक्ति की सीमा में नही आता है । गरीबो ओर खेदूतो के अधिकार के लिए लड़ने वाले अगर दूसरे रास्ते से अपने ही सैनिको ओर निर्दोष लोगों का खून बहाते है तो वो खुदगर्ज ओर बाहरी ताकतों पर नाचनेवाले बंदर ही बनकर रह जाते है ।
पिछले कुछ सालों में इनकी ताकत बढ़ती दिखाई दे रही है और उनकी ताकत के साथ ही उनके घिलोने कृत्य भी बढ़ने लगे है । आएदिन सैनिको की हत्या जैसी इनकी जिंदगी का मकशद ही बन गया है । आदर्शवाद के साथ सुरु होनेवाली कोई भी लड़ाई समय के चलते दिशाहीन होकर आदर्शो को भुला देती है और वो समाज के लिए घातक साबित होती है ऐसे में सरकार की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे संगठन और उनको सपोर्ट करने वालो के खिलाफ बातचीत या समाधान वाली राह ना अपनाते हुए सीधी कार्यवाही करे ।
आशा रखते है कि 26 सैनिको की ये सहादत आखरी सहादत हो । आतंकवाद से प्रेरित संगठन का खात्मा ही इन शहीदों को सच्ची श्रंद्धाजली होगी ।
वर्तमान समय मे जिस प्रकार सामाजिक और राजकीय समीकरण बन रहे है और जो हालात है उसे देखने के बाद भविष्य कुछ इस तरह होगा ।
समाज दो विभाग में पूरी तरह विभाजित ही जायेगा जिसमे एक तरफ होंगे सवर्ण ज्ञाति के लोको ओर दूसरी ओर बची सारी जाती । इन दोनों के बीच बडा ओर लंबा वर्ग विग्रह होगा । जिसमें सवर्ण अपनी लायकात ओर कैपिबिलिटी को हथियार बनाकर जबकि सामने की ओर से उन्हें मिलने वाले सवैधानिक हको को अपना हथियार बनाएंगे । एक लंबे विग्रह के बाद आखिर में सवर्णो की जीत होगी और सर्व समानता के आधार पर एक नया संविधान लिखा जाएगा लेकिन जैसा कि हर सिस्टम में कोई कमी होती है ऐसे ही कुछ सवर्ण जातिया फिर से मध्यकालीन भारत का परिचय कराते हुये शुद्रों पर अत्याचार करेंगे ।
आगे चलके उन सवर्ण ज्ञाति ओ के बीच मे अपने आपको सर्व श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगेगी और उसमें से एक ओर वर्ग विग्रह पैदा होगा जो सवर्ण ज्ञाति ओ के अंदर ही अंदर होगा जिसमे एक तरफ राजपूत, ब्राह्मण, ओर चारण होंगे और दूसरी ओर बाकी सब सवर्ण ज्ञाति होगी । राजपूत, ब्राह्मण और चारण अपनी लायकात ओर धर्म आधारित नीति नियमो ओर प्रजा कल्याण के विचारो को हथियार बनाएगी वही दूसरी ओर बाकी की सवर्ण ज्ञातिया सत्ता और सम्पति के आधार पर अपने आपको सर्व श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करेगी ।
आखिर में धर्म और नीति की जीत होगी और का चारणों की मदद से ब्राह्मण क्षत्रिय का राजतिलक करके भारत की सत्ता के साथ देश और प्रजा कल्याण की जिम्मेदारी के साथ क्षत्रिय को सत्ता पर बिठाएंगे । ओर फिर से भारत विश्व के महानतम देशो में अपना आधिपत्य स्थापित करेगा ।
ये सारी घटनाये आनेवाले 100 से 150 सालो में घटेगी ओर हो सकता है कि इससे कम समय मे भी
बाबा विरम देव की जय हो ।

મોદીજી અને વૈચારિક વિકાસ..

હમણાં રથયાત્રા નિમિતે બંધોબસ્ત માં આવેલા આર્મી ના જવાનો નું અભૂતપૂર્વ સ્વાગત કરવામાં આવ્યું.. મારી જાણ મુજબ કદાચ લોકો માં પહેલા સૈન્ય પ્રત...