Wednesday, May 31, 2017

प्रेम और शरीर ।

प्रेम और शरीर ।
वैसे तो बहुत कुछ लिखा गया है इस विषय पर क्योंकि ये ऐसे विषय है जितना भी जानो कम ही लगता है । और यही विषय है जिस पर आप फिलोसोफी ठोक सकते है आराम से ओर यही होता आया है अबतक । ये सही है और ये गलत बस इन दो वाक्यो के बीच इस विषय को घुमाया गया है हर वक़्त । हमारी महान फिलोसोफी यही कहती है कि जहाँ प्रेम है वहा सेक्स नही हो सकता और जहा सेक्स है वहा प्रेम का होना नामुनकिन है । हम ये भी कहते है कि प्रेम पवित्र है, दो आत्माओ का मिलन है इसलिए प्रेम में शारीरिक संबंध नही होने चाहिए । जब कि सेक्स एक शारीरिक आकर्षण ओर आवेग मात्र है । होगा सायद ये भी सच । लेकिन
कोई भी चीज उसके माध्यम की बिना पॉसिबल नही है । हर संबंध के लिए माध्यम आवश्यक है और बिना माध्यम कोई भी संबंध या भावना व्यक्त नही हो सकती है । अगर आपको गुस्सा आता है किसी पर ओर आप उसे मारना चाहते हो तो आपका हाथ एक माध्यम है । आप रोना चाहो तो आंखे । ये भावनाएं है और प्रेम भी तो उनमें से एक है तो जब किसी के प्रति आपको प्रेम हो तो वो प्रेम व्यक्त करने के लिए शरीर एक माध्यम ही तो है । बिना शरीर का प्रेम शक्य है ??? प्रेम आत्माओं का मिलन है तो उन आत्माओ को भी प्रेम जताने के लिए माध्यम की जरूरत पड़ती ही है । क्या कोई व्यक्ति ऐसे किसी आत्मा से प्रेम करता है जिसके बारे में वो कुछ जानता ही ना हो क्योंकि आत्मा ए तो हर जगह होती है । आप कहेंगे ऐसे कैसे प्रेम होगा । सही है दो प्रेमियों के बीच के रिश्ते को हमेशा से यही नजर से देखा जाता है । आलिंगन या गले मिलना मात्र प्रेम की अभिव्यक्ति ही तो है । आप को बच्चे के प्रति प्रेम आता है तो क्या करते है वही आलिंगन प्रेम की अभिव्यक्ति है बस इसी तरह प्रेमी युगल भी अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते है और हम उसे आवेग का नाम दे देते है ।
तकिया कलम :-
बिना स्पर्श किये प्रेम करना मतलब छाता लेके बारिस में नहाने वाली बात है ।
। वीर ।
23/05/2017

गांधी - पार्ट -3 / गांधी और मोदी ।

गांधी - पार्ट -3
गांधी और मोदी ।
अब आप ये मत कहना कि गांधी नाम की पेटेंट तो कोंग्रेस ने ले रखी है तो उनका नाम मोदी के साथ क्यों ?? जी हाँ गांधी नाम की सीडी का उपयोग करके ना जाने कितने लोग ऊपर पहोच गए लेकिन वो बुड्ढा अभीतक वही का वही है । सभी राजनैतिक पार्टियो ओर नेताओ ने लगातार इस नाम का भरपूर उपयोग किया है और क्यों ना करे यही तो नाम है जिनकी आड़ में ये हरामी नेताओ को ऊपर तक पहोचने का मार्ग दिखता है । कही विरोधा भाष भी है कोई उसको सही बताकर याद करता है तो कोई उसको गाली देकर । जन्मतिथि या श्रंद्धांजलि किसी की भी हो चाहे आज़ाद या भगतसिंह या फिर नत्थूराम जैसे हत्यारे की लेकिन उसको तो याद करना ही पड़ता है मंशा चाहे कुछ भी हो । आप उसे गाली दे सकते हो फ़ेसबुक पर लेकिन जब आपको आपके हक के लिए लड़ना है तो उसी गाँधी के बताए हुए रास्ते का सहारा लेना पड़ता है । बात अब मैन की क्या है गाँधी ओर मोदी का ।
जिस कोंग्रेस का हिस्सा रहा है गांधी उस कांग्रेस ने मात्र सत्ता प्राप्ति के लिए ही उसके नाम का उपयोग किया है । जन्मतिथि या मरणतिथि पर हार चढ़ाके इनको लगता था कि उन्होंने उनका ऋण अदा कर दिया उनको श्रंद्धाजली दे दी । वैसे में हर दूसरे या तीसरे दिन लिखता हु तो उसमें कही ना कही मोदी का विरोध हो जाता है । लेकिन आज मोदी की प्रशंसा करने का मन हुआ तो गांधी को याद कर लिया । हा आज़ाद भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा मोदी सायद जिसने गांधी को सही मायने में ना केवल श्रंद्धाजली दी बल्कि उसको जीवित किया, उनके विचारों को जीवित करने की कोशिश की, उनके स्वप्न का भारत बनाने की ओर एक रास्ता बनाया । मोदी की भारत स्वस्छ्ता अभियान सायद गांधी को सच्ची श्रंद्धाजली है ।
आओ मिलकर मोदीजी ओर गांधीजी के इस स्वप्न के भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे ।
। वीर ।
Dated : 24/05/2017

वैचारिक परिवर्तन

किसी भी समाज का विकास उसकी वैचारिक परिपक्वता पर आधारित होता है इसलिए अगर किसी भी समाज को बदलते समय के साथ अपने समाज को एक विकसित समाज के रूप में स्थापित करना है तक उनको पहले वैचारिक स्तर पर बदलाव लाना होगा । आपका व्यवहार, आपकी भाषा और आपके विचार आपके समाज को अन्य समाज के सामने प्रस्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है । बदलाव को इग्नोर करके अगर आप अपने जड़ विचारो के साथ आगे बढ़ेंगे तो बेसक आपको ओर आपके समाज को संघर्ष में उतारना पड़ेगा और यही संघर्ष आपको ओर आपके समाज को अन्य से दूर ही ले जाएगा ।
। वीर ।

Congress ki trustikaran niti / कांग्रेस की त्रुष्टिकरण निति

लघुमति तृस्टिकरण ही कांग्रेस की कबर खोदने वाली है । आखिर समझ मे ये नही आता कि कैसे इस पार्टी ने 60 साल तक शासन किया है । सायद लगता है कि अस्से लीडर की कमी आज कोंग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी बन गईं है । लगातार अपना अस्तित्व खो रही कोंग्रेस अंतिम श्वास ले रही है और इतनी बड़ी पार्टी के एक भी नेता की बुद्धि नही चलती है कि सिर्फ लघुमति तृस्टिकरण कभी भी सत्ता पर नही बिठा पाएगी उनको । एक तरफ विरोध पक्ष का गला घोंटने ला लगातार प्रयाश हो रहा है सरकार द्वारा ताकि वो अमर्याद सत्ता का लूप उठा शके जो कि लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा क्योंकि विरोध पक्ष लोकतंत्र में एक एहम कड़ी है । कमजोर विरोधपक्ष सरकार को कभी सही निर्णय लेने में मददरूप साबित नही हो सकता । ये जरूरी है कि अगर आपको सत्ता में रहना है तो सर्व हिताय की ही बात करनी पड़ेगी लेकिन कोंग्रेस की गंदी राजनीति के कारण हालात ये है कि बहुमती भारतीय का तो एक वोट उसे नही मिलेगा लेकिन वो लघुमति को भी संभाल नही पाएगी क्योंकि सिर्फ तृस्टिकरण लोगो को लंबे समय तक प्रभावित नही कर सकता है ।
मोदी सरकार की कुछ नीतिओ के कारण लोगो का रुख बदल रहा है था कि कांग्रेस ने फिर उसकी गंदी राजनीति और तृस्टिकरण को दिखा दिया । केरल की घटना के बाद आनेवाले एक भी चुनाव में अगर कांग्रेस एक भी बैठक पर जीत हासिल करती है तो बो बाद आश्रर्य होगा । एक समर्थ व्यक्ति जब दुर्बल व्यक्ति के आधारित हो जाता है तब उसके अस्तित्व पर प्रश्नार्थ लग जाता है ठीक ऐसा ही कांग्रेस ने किया है । वर्तमान राजकरण प्रजाहित की बजाय व्यक्तिगत विरोध का रूप ले चुका है । एक तरफ भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत अभियान है तो दूसरी ओर सारे पक्ष मिलकर सिर्फ और सिर्फ मोदी का विरोध करने में जुटे हुए है और इसी घमासान में प्रजा को नजर अंदाज किया जा रहा है ।
तकिया कलम :-
विरोध का आलम कुछ इस तरह है कि अगर मोदी कह दे कि जाने के बाद पानी से साफ करनी चाहिए तो ये लोग ..........
। वीर ।

देपाल दे - राजपूत राजा ऑफ भावनगर ।

देपाल दे - राजपूत राजा ऑफ भावनगर ।
खेदूतो की जो परिस्थिति है आज देश मे वो बड़ी ही भनायक ओर दयनीय है और सरकार की उनके प्रति जो उदासीन नीतिया है वो ओर भी भयावह है । दिन ब दिन देश के खेदूतो की हालत खराब हो रही है ऐसे माहौल में भावनगर के महाराजा देपाल दे गोहिल को जरूर याद किया जाना चाहिए ।
आज़ादी के बाद लोकशाही प्रथा के लिए देशी राज्यो का विलीनीकरण जरूरी था तब पूरे देश मे सबसे पहले अपना राज्य त्याग देनेवाले भावनगर के महाराजा ओर उनके पूर्वज राजवीओ ने हमेशा लोगो के दिलो पर राज किया है । उसी भावनगर के महाराजा जो कि 1800 गांव के महाराजा थे वो एकबार अपने राज्य की प्रजा की परिस्थिति जान ने के लिए घूमने निकले। जब वो एक खेत के पास से गुजरे तो देखा कि खेत मे खेदुत खेड कर रहा है और देखा तो हल के साथ एक बाजू बैल है और दूसरी बाजू उसकी ओरत को जोता हुआ है । महाराजा ने जाकर उसे रोकने का प्रयाश किया तो खेडूत गुस्सा होकर कह दिया कि मेरे पास ओर बैल नही है और खेती का। समय निकला जा रहा है अगर तुजे दया आ रही है तो तू खुद औरत की जगह हल के साथ जुड़ जा । प्रजा कल्याण ही जिनका कर्तव्य रहा है ऐसे राजपूत ने तुरंत औरत की जगह ले ली और खुद बैल की जगह खेड करने के लिए हल खींचने लगे । बाद में राज्य में जाकर उस खेदुत को नए बैल दिए ।
कथा आगे भी है ।
लोकशाही कभी भी किसी भी हाल में राजशाही की बराबरी नही कर पायेगी ।
। वीर ।

Friday, March 24, 2017

Dear जिंदगी ,

Dear जिंदगी ,
अजीब सी कश्मकश में गुजर रही है तू ! ना ही समझ पाया हूं और ना ही समझ पा रहा हु ! बहुत कोशिश भी की तुजे समजने की पर अफ़सोस की हरबार तू मेरी समझ से कुछ और ही निकलती है ! सोचता हूं कि समजना ही छोड़ दू तुजे पर फिर से तूही मनमे एक मनसा पैदा करती है कि तुजे समजने की एक और नाकाम कोशिश करू ! शायद तुजे ही मजा आने लगा है हर बार मुझे हारता देख ! खेर अब ये मजा ज्यादा नहीं ले पायेगी तू क्योंकि अब मैंने तय कर ही लिया है कि तुजे समजने की कोशिश ही ना करू।

मोदी फेमिया

मोदी फेमिया .......
सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को जाहिर करना, या विदेशो में घूमकर देश का नाम बढाने का दावा करना, इमोशनल होके स्टेज पर रोना या फिर वो मुझे मार डालेंगे ऐसा बयान देकर देश के सैनिक और पुलिस प्रशासन के साथ रक्षा मंत्रालय की काबिलियत पर शक करना, मुझे काट देना, जला देना, फांसी पर लटका देना जैसे भावनात्मक शब्दो द्वारा लोगो की सहानुभूति प्राप्त करना या फिर बिना किसी तयारी के देश के अर्थतंत्र को मुस्किली में धकेल देना ।
ये सारे निर्णय मोदीजी और उनकी सरकार ने सिर्फ कुछ दिनों में ही लिए है । अपनी सत्ता के 3 साल में कुछ ना कर पाए और उन्हें लगने लगा की अब जनता में उनकी मौजूदगी का असर कम होते जा रहा है यो उन्होंने बहोत ही कम समय में कुछ निर्णय ले लिए और वो निर्णय के साथ देशभक्ति को जोड़ दिया । social media और अपने कार्यकर्ता द्वारा इतना और ऐसा प्रसार किया कि कोई आम आदमी अगर उनके निर्णय का विरोध करे तो उसे देशद्रोही का नाम दे दो और बस जनता की भावनाओं को सैन्य के साथ जोड़कर उनके हर निर्णय के साथ सेना का नाम का उपयोग किया गया ताकि कोई आम आदमी अगर उनके किसी भी निर्णय का विरोध करता है तो indirectly वो सेना का विरोध करता नजर आएगा और इसी कारण उनके किसी भी निर्णय का विरोध होना बंद हो गया ।
आखिर ये सब क्यों किया गया। बस phsycology है। जब कोई आदमी या सत्ता किसी किसी मुकाम तक पहोच जाते है या फिर पहोचने का दावा करते है , दिखावा करते है तो लोगो की अपेक्षाएं बढ़ जाती है और जब निर्धारित समय में वो लोग लोगो की अपेक्षाओं के मुताबिक काम नहीं कर पाते तो अपना दिखावा बरक़रार रखने के लिए लोगो को ये अहेसास दिलाना पड़ता है कि वो उनकी अपेक्षाओं के मुताबिक ही काम कर रहे है और इसी हदबड़ाती में वो इसी तरह के निर्णय ले लेते है और फिर उस निर्णय के साथ लोगो की भावनात्मक कमजोरी को जोड़ देते है ।
। जय माताजी ।

મોદીજી અને વૈચારિક વિકાસ..

હમણાં રથયાત્રા નિમિતે બંધોબસ્ત માં આવેલા આર્મી ના જવાનો નું અભૂતપૂર્વ સ્વાગત કરવામાં આવ્યું.. મારી જાણ મુજબ કદાચ લોકો માં પહેલા સૈન્ય પ્રત...