Wednesday, May 31, 2017

जड़ मतलब चेतना विहीन, आत्मा और लागनी विहीन, मृत...और भाई कई सर्वनाम दे सकते है हम इनको । मानवता मर चुकी है, दयाभाव ख़तम हो चूका है, मनुष्य यत्रो से भी ज्यादा जड़ बन चूका है । टेक्नोलॉजी का इतना गलत इस्तेमाल सायद अणु धड़ाको से होनेवाले नुकशान से कम नहीं है । करुणा ही नहीं रही है हम इंसानो में ।
आप सोच रहे होंगे ये सब क्या है । कोनसी फिलोसोफी की किताब से कॉपी किया है । नहीं भाई ये कोई फिलोसोफी की किताब से कॉपी नहीं किया गया है लेकिन थोड़ी देर पहले वॉट्स अप में आये हुए कुछ msg और photoes ने झंझोडकर रख दिया है । एक्सीडेंट में एक नो जवान लड़के की मौत हो गयी है और वो भी बहुत ही भयानक और हम वहा खड़े होकर उस मृत शरीर की फोटो खींचकर शेयर कर रहे है । ऐसे दिल को दहेलादेने वाली करुण घटना की जगह भी अगर हमारे दिल और दिमाग में करुणा की जगह फोटो खींचने की विचार आते है तो बेशक हम आज के यंत्रो से भी ज्यादा जड़ बन चुके है । लगभग ये चीज हर रोज की हो गई है । हर रोज ग्रुप में एक्सीडेंट की, एक्सीडेंट में मरने की कोई ना कोई फोटो आती ही रहती है । आखिर हम कहा जा रहे है । विकास की कोनसी दिशा में आगे बढ़ रहे है । टेक्नोलॉजी जीवन को बहेतर बनाने के लिए है बदतर बनाने के लिए नहीं ।
इससे पहले की देर हो जाये, हम मशीन की जगह और मशीन हमारी जगह ले ले चलो थोड़ा संभल जाते है ।
आखिर में सबसे विनंती है कि महेरबानी करके ऐसी जगह फोटो मत खींचे और उसे शेयर भी मत करे अरे ऐसी जगह फ़ोन पर हाथ ही मत डालिये । अपने अंदर के इंसान को ऐसे किसी समय पे जिन्दा रखेंगे तो सायद गंगा में डुबकी नहीं लगानी पड़ेगी वरना आपके पाप धोते धोते गंगा खुद पापी बन जायेगी ।
। जय माताजी । । शुभ रात्री ।

गांधी - पार्ट -2 / गांधी और भगतसिंह ।

गांधी - पार्ट -2
गांधी और भगतसिंह ।
"क्रांति की तलवार विचारो की धार से तेज होती है "
बहेरे लोगो के कानों तक आवाज पहोचाने के लिए धमाके की जरूर पड़ती है ।
भगतसिंह के ये दो वाक्य प्रतिस्पर्धी है । वैचारिक क्रांति के साथ सडी हुयी सिस्टम को उखाड़ फेंकने वाले बात अगर कोई कह सकता है तो वो भगतसिंह है । भगतसिंह के साथ आज के दिन श्री सुखदेव और श्री राजगुरु को भी फांसी दी गई थी । उन तीनों महान क्रान्तिकारियो को दिल से वंदन ।
आज बहोत लोगो ने उनको शाब्दिक और प्रासंगिक श्रद्धांजलि दी । और उस श्रधांजलि में बहोत से लोगोने जहर भी उगला गांधी के खिलाफ । जब भी मौका मिलता है कुछ सड़क छाप लेखक कही से भी कुछ भी उठाकर wall पे पोस्ट कर देते है ऐसे लोगो से निवेदन है कि कृपया आप जबकि किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के बारे में कुछ भी लिखो पहले उनके लिए किसी के द्वारा लिखी गई कोई पुस्तक पढ़ो और बादमे ही लिखो ।
बहोत से लोग बारबार पोस्ट करते है कि इन तीन क्रान्तिकारियो को फांसी दिलाने में गांधी का हाथ था उन सभी से निवेदन है कि उस वाकया के नीचे किसी पुस्तक का reference भी दे ताकि हम जैसे गवार लोग पढ़ शके ।
जहाँतक और जितना मैंने पढ़ा है । गांधीजी की असहकार आंदोलन की लड़ाई ने ही भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारियो को जन्म दिया था । जब देश गांधी ने असहकार आंदोलन चलाया तब उनसे प्रेरीत होके भगतसिंह और उनके जैसे कई नोजवानो ने अपनी पढाई बिच में छोड़कर गांधीजी के इस आंदोलन में जुड़ गए । लेकिन बाद में चौरीचौरा हत्याकांड की वजह से गांधीजी ने ये आंदोलन बंद कर दिया और वही से भगतसिंह और उनके जैसे युवानो ने सोचा की संपूर्ण अहिंसा से आज़ादी नहीं मिलेगी और उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया ।
नाम याद नहीं है लेकिन किसी की लिखी महान क्रांतिकारी सुखदेव पुस्तक के हिसाब जिस समय भगतसिंह और उनके साथियो को फांसी की सजा सुनाई उसके बाद गांधीजी और कांग्रेस के कुछ लोगो ने उनके पास एक वकील को भेजा था जो भगतसिंह का दोस्त भी था । उसके मुताबिक गांधीजी चाहते थे की भगतसिंह और उनके साथी गवर्नर को एक अर्जी लिखे जैसे आजकल फांसी की सजा पानेवाला व्यक्ति राष्ट्रपति को लिख सकता है । भगतसिंह के वो दोस्त ने गांधीजी और दूसरों के साथ मिलके एक अर्जी तैयार की थी जिसमे ये ध्यान में रखा गया था कि उस अर्जी से क्रान्तिकारियो के स्वमान को कोई ठेस ना पहोचे । लेकिन भगतसिंह चाहते थे की देश के युवा जागे इसलिए वो अपने विचार लोगो तक पहोचाना चाहते थे और उनके हिसाब से उनकी सहादत ही ये काम कर सकती थी इसलिए वो फांसी पर लटककर देश को जगाना चाहते थे ।
अंत में अगर भगतसिंह और उनके साथी चाहते तो असेम्बली में बोम्ब ब्लास्ट करके भाग सकते थे और बच भी सकते थे लेकिन वो ये नहीं चाहते थे ।
मरकर भी ना निकलेगी वतन की उल्फत ।
मेरी मिटटी से भी खुश्बू ए वतन आएगी ।
लेखन :- वीर Dated : 23rd March, 2017
UP special....
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व का एजेंडा लेकर चलने वाले पक्ष को up की जनता ने प्रेम और आदर से जिताया और पक्ष ने भी आदित्यनाथ जैसे युवा, कर्मनिष्ठ, सन्यासी को मुख्यमंत्री बनाकर कुछ हद तक यूपी की जनता की भावनाओं की कदर की है जो देश के लिए आनेवाले समय में प्रगतिशील साबित होगी ।
अब योगीजी ने भी आते ही मैच के लास्ट ओवर में दिखने वाली आक्रामकता के साथ अपना काम शुरू कर दिया । कुछ कतलखाने बंद करवाये, एंटी रोमियो स्कोड की नियुक्ति की ताकि देश की बेटिया सलामत रह शके(आशा रखते है कि स्कोड अपना काम पूर्ण ईमानदारी और प्रमाणिकता से करे क्योंकि सेवा के नाम पर मेवा खाना और रक्षा के नाम पर भक्ष करना हमारे देश में आम बात है ) उसके बाद सुना है कि स्कूल में शिक्षकों के लिए मोबाइल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । चलो मानते है सही किया अब शिक्षक पूरा ध्यान बच्चो को पढ़ाने में लगा सकेंगे लेकिन ये आपने किया है तो एक काम और भी करना चाहिए था सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियो को भी यही शर्त लागु की जानि चाहिए जो की अभीतक नहीं की है क्योंकि भ्रस्टाचार के बड़े बड़े सौदे ऐसे ही पर्सनल फ़ोन द्वारा ही तो होते है ।
अब जब आप सबसे ऊपर है तब आपकी जिम्मेदारी उन सब लोगो के प्रति है जो राज्य में रहते है । जात, धर्म को भुलाकर आपको सबको साथ लेकर चलना पड़ता है । अगर आप ये करने में असफल रहे तो बेसक आपकी प्रमाणिकता पर सवाल उठेंगे । आज किसी मुसलमान दोस्त में एक लिंक शेयर किया दिखा उसमे उसने लिखा है कि up के सबसे बड़े 32 कतलखाने के मालिक या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में मुस्लिमो के साथ कई हिन्दू भी है । जब आप कतलखाने बंद करवा ही रहे है तो कृपया इन 32 पर भी ध्यान दे ।
इस लिंक की सत्यता का मुझे पता नहीं लेकिन उसने उस लिंक में उस 32 कत्लखानो के नाम address के साथ दिए है ।
अंत में जब आप धर्म और अहिंसा की बात करते हो तब हिंसा करने वाला समाज के लिए घातक ही होता है चाहे वो किसी भी धर्म का हो । हिंसा चाहे गैरकानूनी कत्लखानो में हो या रजिस्टर्ड कत्लखानो में , हिंसा , हिंसा होती है । किसी जानवर की हत्या को आप वैधानिक अनुमति दे रहे है वही दूसरी और उसी हत्या आपके लिए गलत है तो ये दोगलापन है ।
लेखन :- वीर ...Dated:- 25/03/2017
भावनात्मकता हम भारतीयों की कमजोरी है और व्यक्तिपूजा हमारे खून में है चाहे वो नेहरू हो या मोदी । भारतीय राजकारणी अस्सी तरह से जानते है कि लोगो की भावनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए । बेसक सनातन धर्म का उदय होते हुए देख रहे है सब लेकिन जो कभी अस्त ही नहीं हुआ उसको उदय होनी की जरुरत ही क्या है । सनातन धर्म कल भी मध्याह्न के सूरज की माफिक तप रहा था और आज भी । मात्र केवल एक हप्ते में लिए गए कुछ उत्तेजक निर्णयों के आधार पर ही सनातन धर्म का उदय स्वीकार्य है तो इसका उदय बाबरी ध्वंश से ही माना जाना चाहिए । चंद बूचड़खाने बंद करवाना ही मापदंड नहीं होना चाहिए सनातन धर्म के उदय के लिए । और बात जब हम सनातन धर्म की करे तो क्या किसी को पशु की जान लेने के लिए संविधानिक अनुमति दे सकते है क्या ?? सिर्फ असंवैधानिक भुचडखाने बंद करवाना मात्र ही सनातन का उदय मानना उन हजारो पशुओं के प्रति हमारी रुस्थता ही होगी जो अब संविधानिक कत्लखानो में काटे जायेंगे । 
जगत नो तात - पिता, भरण पोषण करनेवाला ।
सरदार पटेल ने कहा था अगर इस धरती पे छिना तान के चलने का हक़ अगर किसी को है तो वो खेडूत को ही है ।
भगवान ने दुनिया का सर्जन किया और उस दुनिया को आगे चलाने के लिए दुनिया को माँ की भेंट दी । हम अक्षर कहते है कि भगवान हर जगह नहीं पहोच सकता इसलिए उसने माँ का सर्जन किया । ये जितना सच और महत्वपूर्ण है उतना ही सच ये कहना होगा की भगवान हर किसी को खाना नहीं दे सकता इसलिए उसने खेडूत का सर्जन किया । शारीरिक अथाग परिश्रम और असफल होने का सबसे ज्यादा मानसिक बौज लेकर जीनेवाला खेडूत फसल ऊगा के इस दुनिया को खाना खिलाता है । जहाँ आज हम वाइट कॉलर जॉब के पीछे भाग रहे है वही खेडूत दिन ब दिन कम होते जा रहे है । ये दुनिया का अकेला इंसान होगा जिसके हिस्से में कभी कभी उसका पैदा किया हुआ खाना भी नसीब नहीं होता । ठंडी, गरमी या बरसात में अपनी चिंता ना करते हुए खेदुत दिन रात महेनत करके इस दुनिया को वो चीज देते है जिस पर पूरा जीवन निर्भर है लेकिन समय की बलिहारी है कि अब कोई खेती करना नहीं चाहता वहा तक की खेडूत खुद नहीं चाहता की उनके बच्चे उसकी तरह खेती करके जिंदगी भर कर्ज के नीचे दबकर घुटन भरी जिंदगी जिए । बेशक देश की आज़ादी के तुरंत बाद देश की सरकार ने खेती लक्षी योजनाये बनायीं थी लेकिन 1991 के बाद औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई और सरकारों ने खेती के प्रति ध्यान देना बंद कर दिया । खेदुत की दशा दिन ब दिन इतनी बिगड़ती गई की वो आत्महत्या करने पर मजूबर हो गए । गूगल गुरु की मदद से लिए गए कुछ रिजल्ट फोटो में है जिसे देखने के बाद हम अंदाजा लगा सकते है कि खेडूत की हालत कैसी होगी । personally भी मैं गांव से belongs करता हु तो पता है की गावो में खेडूत की हालत कैसी है ।
इतना कम है तो अब एक नया तमाशा शुरू किया है हमारे नेता और उनकी पार्टी के सपोर्टर ने । अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए देश में आजकल एक फैशन चल रही है । किसी भी मुद्दे के साथ सेना और खेडूत को जोड़ कर लोगो की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने की लगातार कोशिश की जा रही है । जब दूध या उनकी बनावट या फिर सब्जी के दाम बढ़ते है और उसका विरोध होता है तो नेता और उनके लोगो द्वारा एक भावनात्मक msg घुमाया जाता है ।
सिनेमा की टिकिट के भाव से तकलीफ नहीं है, बीड़ी सिगरेट की कीमत से तकलीफ नहीं है तो दूध और सब्जी के दाम बढ़ने से क्यों चिल्ला रहे हो ।
अब ये msg घुमाने वालो को सायद पता भी नहीं होगा की ये जो दाम बढ़ाये जाते है वो कंपनी या व्यपारियो के द्वारा बढ़ाये जाते है और मुझे नहीं लगता कि इस बढे हुए दाम का फायदा किसी खेडूत को मिलता हो । अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए खेडूत का सहारा लेने वाले इन नेताओं को सत्ता के अलावा कुछ नहीं दिखता लेकिन हम जनता कमसे कम उनके बारे में सोचेंगे तो सायद उनका भला हो सकेगा । वरना जिस तरह से आत्महत्या के अंक बढ़ रहे है ऐसा ना ही की हमारी आनेवाली पीढ़ी खेडूत को किसी म्यूसियम में देखे और कहे की इस धरती पर कभी खेडूत नाम के परोपकारी प्राणी का अस्तित्व था ।
औद्योगिक विकास। किसी भी देश के विकास के लिए जरुरी है लेकिन वो खेती को खत्म करके नहीं होना चाहिए ।
लेखन :- वीर Dated :- 31/03/2017
श्री कृष्णा ।
बहुत दिनों से सोच रहा था कृष्ण के बारे में लिखने के लिए पर आज एक news देखा की प्रशांत भूषण ने रोमियो के साथ इनकी समानता करके रोमियो को सही साबित करने के लिए इनके चरित्र पर निशान साधा है ।
प्रशांत भूषण जैसे लोग ये कर सकते है क्योंकि हमने आज तक श्री कृष्णा को दुनिया के समक्ष इसी रूप में प्रमोट किया है । जशोदा के लाल से गोपियों संग रास रचने तक ही सिमित रखा है हमने यादव कुलभूषण को । हमारा साहित्य और संगीत, फ़िल्मी गीत हो या भजन हमने इसे इसी रूप में पूजा है । हमने कभी इसको गौ चराने वाला ग्वाला बताया है तो कभी माखन चोरी करने वाला नटखट कन्हैया बताया है । कभी उनसे हमने गोपियों के कपड़ो की चोरी करवाई है तो कभी उनकी मटकी फोड़ने के लिए उनकी शरारत को दिखाया है । हमने कभी कृष्णा को गोकुल से निकलने ही नहीं दिया है । हमारे लिए कृष्णा गोकुल तक सीमित है । हमारी धार्मिक परंपरा हो या जन्मोष्त्व हमने कृष्ण को पालने में झुलाया है । और सायद यही कारण है कि भूषण जैसे लोग उनके चरित्र पर उंगली उठाने की कोशिश कर सकते है ।
मुझे अगर भगवान कृष्ण का कोई रूप पसंद है तो वो है कुरुक्षेत्र के मैदान में धर्म युद्ध का शंखनाद करने वाला या फिर भीष्म पर रथ के पइये को चक्र बनाकर युद्ध का आगाज करने वाला। । हक़ीक़त में कृष्ण की सही पहचान करनी है तो आपको कुरुक्षेत्र की और देखना पड़ेगा । कुरुक्षेत्र के मेदान में युद्ध के लिए खड़े कृष्ण का रूप ही उनके मनुष्य अवतार का सही मकशद और सही पहचान है । लेकिन हमने कुरुक्षेत्र के कृष्ण को कभी बहार ही नहीं आने दिया । शिशुपाल वध से ज्यादा हम रण छोड़कर रणछोड़ कहलाये वो बाते ज्यादा करते है । पुरे महाभारत के महा युद्ध के रचयिता भगवान कृष्ण को हमें कुरुक्षेत्र में भगवद गीता तक सीमित कर दिया है । अर्जुन ने जिस रूप को देखा उस वैष्विक रूप को हमने कभी दुनिया को बताया ही नहीं ।
लोकशाही और कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर हमारी संस्कृति और धार्मिकता पर वार करने वाले भूषण जैसो को हमने कृष्ण की राजनैतिक चातुर्य का कभी दर्शन ही नहीं करवाया है । और इसलिए ये लोग बारबार हमारे आराध्य अवतारो पर सवाल खड़े करते है । जिस दिन इन लोगो को कुरुक्षेत्र के कृष्ण या लंका के रण में रावण का वध करने के लिए धनुष्य उठानेवाले राम या अपने नहोर से हिरण्य कश्यप को चीर देने वाले नरसिंह भगवान के दर्शन होंगे उसके बाद उनकी हिम्मत नहीं होगी इस तरह के सवाल उठाने की ।
लेखन :- वीर Dated:- 03/04/2017
रामनवमी के शुभ अवसर पर राक्षसी विचार के साथ नेगेटिव पोस्ट ।
आशा करते है और आज रामनवमी के दिन मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम से प्रार्थना करते है कि आनेवाले समय में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो जाये, देश में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के साथ ऐसा करने वालो को कड़क सजा के लिए कानून बने, गाय को राष्ट्रीय पशु जाहिर किया जाये, बांग्लादेशी घुस पेथिये अपने देश खदेड़ दिए जाये, हिंदुस्तानी मुसलमान वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए बकरी ईद के दिन मिठाई वहेचके जिव हत्या पर रोक लगाए , योग करे और अपने बच्चों को उर्दू के साथ संस्कृत सिखाये, कुरान के साथ रामायण और गीता के पाठ हो, भूषण जैसे लोग देश छोड़कर जा चुके हो । लव जिहाद खत्म हो चुकी हो ।
अब विचार ये आ रहा है कि अगर ये सब हो गया तो फिर हिंदूवादी संगठन और संस्थाएं और उनके नेताओ के साथ उनके अनुयायी क्या करेंगे ??? वो तो बिना काम के हो जायेंगे उनके पास कोई काम ही नहीं रहेगा । सारे संगठन और संस्थाएं बंद हो जायेगी फिर उनके नेता क्या करेंगे । क्या वो संन्यास लेके हिमालय चले जायेंगे या फिर समाधी लगा के श्री राम के दर्शन के लिए भक्तिमय हो जायेंगे । विकास का मुद्दा काम नहीं कर रहा है ऐसा लगने पर राजनैतिक पार्टीया किसका सहारा लेंगे । राम मंदिर बन जाने के बाद वाद प्रतिवाद में व्यस्त रहते नेता लोग अंदर ही अंदर घुटन महसूस करेंगे । लघुमति के साथ होने का दावा करने वाले सेक्युलर के पास विरोध करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा ।
बहुत ही कड़वा सच है क्या हक़ीक़त में कुछ लोग चाहते है कि राम मंदिर बने, गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लग जाये , और ये वो लोग भी हो सकते है जो अपने आपको कट्टर हिन्दू बता रहे है या सालो से राम मंदिर निर्माण के लिए लड़ने का दावा कर रहे है , अपने आपको हिन्दुओ के संरक्षक मानने वाले भी हो सकते है या फिर सेक्युलारिसम पर बात बात पर राजनैतिक इशू बनाने वाले बाबर के वंशज भी हो सकते है ।
राम मंदिर सनातन धर्म की आस्था का प्रतिक है और उसे उनके जन्मस्थल पर बनाने का विरोध करनेवाले लोग चाहे किसी भी धर्म के हो वो जाने अनजाने में देश द्रोह ही कर रहे है । राम सिर्फ किसी एक धर्म के भगवान से भी ज्यादा एक सर्व स्वीकार्य राजा थे और एक सुशान देनेवाला राजा सभी धर्म और प्रजाति के लिए आदरणीय होता है । प्रजावत्सलता जिनके राज्य की पहचान हो ऐसे अयोध्या नरेश के मंदिर का निर्माण भारत में रहने वाले हर भारतीय के लिए पहेली पसंद होना चाहिए ।
आओ सभी राजनैतिक पार्टियों और धार्मिक संगठनो की सहाय के बिना सिर्फ प्रजा के प्रयत्नों से राम मंदिर का निर्माण करने के प्रयाश करे ।
जय श्री राम ।

મોદીજી અને વૈચારિક વિકાસ..

હમણાં રથયાત્રા નિમિતે બંધોબસ્ત માં આવેલા આર્મી ના જવાનો નું અભૂતપૂર્વ સ્વાગત કરવામાં આવ્યું.. મારી જાણ મુજબ કદાચ લોકો માં પહેલા સૈન્ય પ્રત...