एकलव्य ।
कुछ दिन पहले एक जगह बैठा था तो वहा दो लोग चर्चा कर रहे थे की एकलव्य का अंगूठा धोके से ले लिया ताकि वो आगे जाके बाण ना चला शके और अर्जुन ही विश्व का श्रेष्ठ धनुर्धारी बना रहे है । किसी भी ने मुझे पूछा था कि दलितों और निचले काष्ठ की बातों में एकलव्य के बारे में आपका क्या कहना है ।
में मानता हूं कि गुरु कभी गलत नहीं हो सकता और जब हम बात द्रोण जैसे गुरु की करते है तो कतई उनको गलत मान नहीं सकते है । गुरु हमेशा अपने शिष्य के भविष्य के बारे में सोचता है और सायद इसी वजह से कभी गुरु का वर्तमान में लिया गया कठोर निर्णय हमें विचलित कर देता है । सोचो अगर गुरु द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा नहीं लिया होता या एकलव्य में गुरु दक्षिणा में नहीं दिया होता तो क्या आज हम एकलव्य को याद करते होते ?? वो एक भील जाती का लड़का था और आज के समय में भी हमारे देश में लाखों करोडो प्रतिभाएं है जिनको कही भी स्थान नहीं मिलता है । अगर गुरु द्रोण ने उससे अंगूठा नहीं माँगा होता तो वो जंगल के उस अँधेरे में गायब हो जाता और कभी भी उसको इतिहास के पन्नो पे जगह नहीं मिलती क्योंकि वो कितना भी बड़ा धनुर्धारी होने के बावजूद सायद महाभारत के युद्ध में भाग नहीं ले पाता और नाही वो अपने बल पर कभी सत्ता प्राप्त कर सकता । नाही वो कभी अर्जुन को हरा सकता और ना ही बो युद्ध के इतिहास का हिस्सा बन पाता और यही बात गुरु द्रोण अस्सी तरह से जानते थे इसलिए उसकी प्रतिभा और उसको हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बना ने के लिए उससे गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया और आज हम अगर एकलव्य को याद करते है तो सिर्फ यही वजह है कि उसने गुरु के कहने पर गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा दे दिया । वरना उस वक़्त और आज के समय में हमारे देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है लेकिन वो किसी गली के अंधेरो में से दुनिया के सामने आ ही नहीं पाते क्योंकि उनके पास गुरु द्रोण जैसा गुरु नहीं होता । एकलव्य और द्रोण के किस्से में द्रोण की दूरंदेशी पूजने योग है और हर हालत में वो सही है इसलिए आज के दौर में एकलव्य को दलित समझकर ही उसके साथ ये व्यव्हार किया ऐसी सोच रखना संपूर्ण गलत होगा ।
लेखन :- वीर dated :- 26/02/2017
No comments:
Post a Comment