जय माताजी....जय राजपूताना........
इतिहास ओर राजपूतो की बहदुरी की कहानिया सुनते समय बहोत बार यही विचार आता है की आखिर हमारे इन महान पूर्वजो के पास इतनी शक्ति कैसे थी.....बिना शिर का धड़ सायद पूरी दुनिया मे सिर्फ राजपूत का ही लड़ सकता है या जलती चीता मे सिर्फ राजपुतानी ही सती हो सकती है.....फिर जब उनके जीवन को नजदीक से पढ़ा तब पता चला की उनकी इस शक्ति का राज खुद शक्ति ही थी...हा जगत जननी जगदंबा माँ कुलदेवी हमेश राजपूतो के साथ रहेती थी ओर राजपूत कभी भी शक्ति की आज्ञा के बिना कुछ नहीं करते थे...राजपूत शक्ति के उपासक है इसलिए सायद हजारो लाखो सालो से इंका अस्तित्व लाखो मुसीबतों के बावजूद भी कायम है.......वो ही शक्ति है जिन्हों ने 21 बार पृथ्वी को नक्षत्री करनेवाले परशुराम से न केवल क्षत्रियो का रक्षण किया था बल की जनकपुरी मे उनको जुकाया भी था......आज हमारी जो भी हालत है सायद उसके पिसे काही न काही एक कारण ये भी है की हम शक्ति की उपासना की जगह उपेक्षा करने लगे है....आधुनिकरण ओर दूसरी संस्कृति के अनुकरण की वजह से हम अपनी संस्कृति ओर परमपरा भूलने लगे है .......हमे हमारे वजूद को कायम रखने के लिए फिर से उसी शक्ति की शरण मे जाना होगा तभी सायद इस देश को हम रामराज्य तक ले जा सकेंगे.........हमारे घर मे बड़ी होती हमारी बेटी....साथ खेलती बहन,....साथ देने वाली भगिनी ओर जिंका पूरी श्रुष्टि पे उपकार है वो जन्म देनेवाली हमारी जननी इसी शक्ति का रूप है...उनका सन्मान शक्ति की उपासना से कम नहीं है....आओ इस नवरात्रि मे फिर से उस शक्ति की शरण मे जाके उसे प्रार्थना करे ओर हमारे भव्य भूतकाल को फिर से सजीवन करने के वरदान पाये..........
...................वीर...............