जय माताजी.....
एकबार एक शेर का बच्चा अपने दूसरे भाइयो से भिसड़ के अलग हो गया ओर जाके sheep के जूण्ड के साथ मिल गया ओर वो उनके साथ ही बड़ा होने लगा .....वो बड़ा हो गया उसी जुण्ड मे ओर अब वो जंगल मे भी जाने लगा उसी जुण्ड के साथ लेकिन जंगल मे जैसे ही शेर आता तो sheep का ये जुण्ड भाग जाता था ओर ये शेर भी उनके साथ ही भाग जाता था॥ये देखकर दूसरे शेर को आश्चर्य होने लगा की ये शेर है फिर भी क्यू भाग रहा है...एक दिन शांति से शेरो ने उस शेर को पकड़ लिया ओर उसे तालाब के पास ले गए ओर उसे कहा की वो शेर है॥उसने जब अपना प्रतिबिंब पनि मे देखा तो उसके अंदर के खून के संस्कार जग गए ओर वो शेरो के साथ शिकार करने लगा.......
आपको नहीं लगता की ये स्टोरी आज के टाइम मे हमे ही लागू होती है हम भी अपने भाइयो से बिसड़ के सब अलल्ग अलग हो गए है ओर ऐसे ही किसी न किसी sheep के जुण्ड मे जाकर अपने खुद के संस्कार ओर खुदकी पहेचान भी भूल गए है...हमे पता ही नहीं है की हम कोण है....जब भी कोई दूसरा शेर हमे अपने पैन का अहेसाश करने आता है तो हम उन्हे देखकर भाग जाते है क्यूकी हमने खुद को आईने मे देखनी की कभी कोशिश ही नहीं की......जरूरु है अपने जमीर को जागकर एकबार अपने आप को आईने मे देखने की ओर एकबार हम अपने आपको पहेचान गए तो फिर हमारे अंदर के खून के संस्कार जग जाएंगे ओर फिर दुनिया मे कुछ भी ऐसा नहीं है जो हम हासिल न कर सके....बस हमे जगाने के लिए आते हमारे भाइयो को देखकर भागना बंद करना होगा......
जय माताजी ...जय राजपूताना....
जय माताजी ...जय राजपूताना....
No comments:
Post a Comment