आज तारक मेहता का उल्टा चस्मा के पुराने एपिसोड देख रहा था जिसमे गोकुलधम सोसाइटी मे कलर कम आधा छोड़कर आदमी चले जाते है ओर दूसरा कोई भी ये कम करने के लिए रेडी नहीं होता...तब चंपकचाचा कलर करना सुरू करते है ओर बाद मे सब उनके साथ मिलके ये काम पूरा करते है.......
हम हमेशा दूसरे के आधार पर बहोत से काम अधूरा या पूरा छोड़ देते है ये कहकर की ये काम करने के लिए कोई नहीं मिला लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते की ये काम दूसरा नहीं तो मे खुद करुगा....बाहर की ताकत के सहारे जीने की आदत इतनी हो गयी है की हम खुदके लिए लड़ने की भी कोशिश नहीं करते ओर न ही प्रयत्न करते है....गांधीजी ने ग्राम स्वराज की बात की थी लेकिन हमे तो व्यक्ति स्वराज लाना होगा ओर एक बार अगर एज़से काम की हम सुरुआत करते है तो लोग अपने आप खुद जुड़ जाते है....जरूर है हमे हमारी सोच बदलने की ओर इसकी शुरुआत भी हमसे ही करनी होगी ना की बाहर के आदमी के शुरुआत करने का इंतजार करेंगे.......
किसी शायर ने कहा है की.....
""मे तो अकेला ही चला था ,लोग जुडते गए, कारवे बनते गए।""
हम हमेशा दूसरे के आधार पर बहोत से काम अधूरा या पूरा छोड़ देते है ये कहकर की ये काम करने के लिए कोई नहीं मिला लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते की ये काम दूसरा नहीं तो मे खुद करुगा....बाहर की ताकत के सहारे जीने की आदत इतनी हो गयी है की हम खुदके लिए लड़ने की भी कोशिश नहीं करते ओर न ही प्रयत्न करते है....गांधीजी ने ग्राम स्वराज की बात की थी लेकिन हमे तो व्यक्ति स्वराज लाना होगा ओर एक बार अगर एज़से काम की हम सुरुआत करते है तो लोग अपने आप खुद जुड़ जाते है....जरूर है हमे हमारी सोच बदलने की ओर इसकी शुरुआत भी हमसे ही करनी होगी ना की बाहर के आदमी के शुरुआत करने का इंतजार करेंगे.......
किसी शायर ने कहा है की.....
""मे तो अकेला ही चला था ,लोग जुडते गए, कारवे बनते गए।""
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